अवतार : शब्द का या अर्थ का
(अवतार सीरीज-२)
+ + + + + +
हास
परिहास
उपहास
अट्टाहास,
हास के
अवतार,
किन्तु
उपसर्गों ने
बदल दिए है
अर्थ हर रूप में,
नहीं जानती मैं
होते हैं
शब्दों के अर्थ या
अर्थों को रूप देने
हुआ करते हैं
शब्दों के अवतार ?
हो जाते हैं
किन्तु मनस्थितियां से
दिग्भ्रम और मतिभ्रम के अवतार,
मृदुल हास या परिहास
लगने लगता है उपहास,
देने लगती है
मैत्रीमय कोमल स्मिति
तीव्र व्यंग का आभास,
कह सकता है
मौन भी अनकहा
बता देती है
नयनों की उदासी
सब कुछ था जो सहा,
देने को सन्देश हर्ष का
आँख से आंसू बहा
पीर का नीर बन वही
दृग से झरता रहा,
अनुभूतियों के ये अवतार
कितने विरोधावासी है
अपने ही देश में रहते
बन कर ये प्रवासी है.
 
 ☺ युनिफॉर्मड(धोती अंगरखा) और टैटू (लंबा/आड़ा/यु-आई शेप तिलक) धारी पंडित जो दुनियां के परहेज़ की बात करते हैं और सब कुछ खा पी जाते है, डिटेल्स धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा सकती है, ओशो, सद्गुरु, डबल श्री, के चेले/चेलियाँ जो खुद को अपने अपने गुरुओं के ज़िंदा भूत समझ कर, उनके अंदाज़ में बातें करते हैं, सिर पर काला टीका वाले दाढ़ी बढाए मूंछ मुंडे मुल्ला मौलवी जो ना जाने क्यों छोटी लेंथ का पाजामा पहनते हैं, ऐसे प्रोग्रेसिव जैन/सनातनी/आर्यसमाजी/क्रिस्तान/मुसलमान बन्दे जिनका प्रगतिवादी और उदारवादी दृष्टिकोण हमारे अपार्टमेंट के दरवाजे में घुसते समय शुरू होता है और निकलने के साथ ख़त्म हो जाता है- हाँ खाने पीने के साथ परवान चढ़ता है, कुछ चमचे/चमची टाइप्स नर नारी जो साहेब के ऐसे गुणों का बखान करते नहीं थकते जो मैं अपने कई दशकों के साथ के बावज़ूद भी नहीं जान पायी, अभुगतनीय क़र्ज़ लेने वाले ज़रूरतमंद जो हम से अच्छी गाड़ियों में आते हैं, मेडिकल मसलों पर सलाह करने वाली पब्लिक , बच्चों की पढ़ाई और कैरियर काउन्सलिंग के लिए भी मुफ़्त सलहार्थी, बाप बेटे- भाई भाई - मोटियार लुगाई के झगड़ों के पंचायतोत्सुक इत्यादि इत्यादि. हालांकि जैसा कि मैंने पहले भी कहा, जब से मोबाइल/व्हाट्सऐप/ वीचैट/फेसबुक का प्रचलन बढ़ा है ऐसी ही कुछ ट्रैफिक वहां भी डाइवर्ट हो गयी है. अरे भूल ही गयी, इन सब के बीच रेगिस्तान में निखलिस्तान की तरह कुछ अच्छे लोग भी कभी कभी दिखाई देते हैं लेकिन बहुत कम. मज़े की बात, हमारे साहेबजी सब को बड़े प्यार से बड़े धैर्य से झेलते हैं
☺ युनिफॉर्मड(धोती अंगरखा) और टैटू (लंबा/आड़ा/यु-आई शेप तिलक) धारी पंडित जो दुनियां के परहेज़ की बात करते हैं और सब कुछ खा पी जाते है, डिटेल्स धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा सकती है, ओशो, सद्गुरु, डबल श्री, के चेले/चेलियाँ जो खुद को अपने अपने गुरुओं के ज़िंदा भूत समझ कर, उनके अंदाज़ में बातें करते हैं, सिर पर काला टीका वाले दाढ़ी बढाए मूंछ मुंडे मुल्ला मौलवी जो ना जाने क्यों छोटी लेंथ का पाजामा पहनते हैं, ऐसे प्रोग्रेसिव जैन/सनातनी/आर्यसमाजी/क्रिस्तान/मुसलमान बन्दे जिनका प्रगतिवादी और उदारवादी दृष्टिकोण हमारे अपार्टमेंट के दरवाजे में घुसते समय शुरू होता है और निकलने के साथ ख़त्म हो जाता है- हाँ खाने पीने के साथ परवान चढ़ता है, कुछ चमचे/चमची टाइप्स नर नारी जो साहेब के ऐसे गुणों का बखान करते नहीं थकते जो मैं अपने कई दशकों के साथ के बावज़ूद भी नहीं जान पायी, अभुगतनीय क़र्ज़ लेने वाले ज़रूरतमंद जो हम से अच्छी गाड़ियों में आते हैं, मेडिकल मसलों पर सलाह करने वाली पब्लिक , बच्चों की पढ़ाई और कैरियर काउन्सलिंग के लिए भी मुफ़्त सलहार्थी, बाप बेटे- भाई भाई - मोटियार लुगाई के झगड़ों के पंचायतोत्सुक इत्यादि इत्यादि. हालांकि जैसा कि मैंने पहले भी कहा, जब से मोबाइल/व्हाट्सऐप/ वीचैट/फेसबुक का प्रचलन बढ़ा है ऐसी ही कुछ ट्रैफिक वहां भी डाइवर्ट हो गयी है. अरे भूल ही गयी, इन सब के बीच रेगिस्तान में निखलिस्तान की तरह कुछ अच्छे लोग भी कभी कभी दिखाई देते हैं लेकिन बहुत कम. मज़े की बात, हमारे साहेबजी सब को बड़े प्यार से बड़े धैर्य से झेलते हैं