प्राक्कथन अवतार सीरीज का
★★★★★★★★★
जब यहाँ सब अपने हैं तो साफ साफ बता देने में क्या संकोच. ये 'सरजी' याने हमारे 'साहेब' हैं ना बड़े लाज़वाब, दिलदार, समझदार, वेल रेड, चिंतनशील मगर बड़े ही अजीब इंसान है.
तरह तरह के उपाय आजमाने के बाद भी मैं घर में बहुत से अजीबो गरीब नमूनों की आमद को एकदम बंद कर पाने में नाकामयाब रही हूँ, शुक्रिया सोसल मीडिया का कुछ भीड़ वहां डाइवर्ट हो गयी, फिर भी..
हाँ तो हमारे घर इन बुलाये बिन बुलाये मेहमानों में शुमार प्राणी हैं : महाज्ञानी टाइप्स दंभी और हाइली इम्प्रेक्टिकल प्रोफेसर्स जो भूल में या जानकर दूसरों की प्लेट से भी नाश्ता खा जाते हैं, रिपीट परफॉर्मेंस भी दे देते है ना सिर्फ चाय-काफी-शरबत-शिकंजी के लिए बल्कि गीले सूखे/ठन्डे गरम नाश्ते के सन्दर्भ में भी☺ युनिफॉर्मड(धोती अंगरखा) और टैटू (लंबा/आड़ा/यु-आई शेप तिलक) धारी पंडित जो दुनियां के परहेज़ की बात करते हैं और सब कुछ खा पी जाते है, डिटेल्स धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा सकती है, ओशो, सद्गुरु, डबल श्री, के चेले/चेलियाँ जो खुद को अपने अपने गुरुओं के ज़िंदा भूत समझ कर, उनके अंदाज़ में बातें करते हैं, सिर पर काला टीका वाले दाढ़ी बढाए मूंछ मुंडे मुल्ला मौलवी जो ना जाने क्यों छोटी लेंथ का पाजामा पहनते हैं, ऐसे प्रोग्रेसिव जैन/सनातनी/आर्यसमाजी/क्रिस्तान/मुसलमान बन्दे जिनका प्रगतिवादी और उदारवादी दृष्टिकोण हमारे अपार्टमेंट के दरवाजे में घुसते समय शुरू होता है और निकलने के साथ ख़त्म हो जाता है- हाँ खाने पीने के साथ परवान चढ़ता है, कुछ चमचे/चमची टाइप्स नर नारी जो साहेब के ऐसे गुणों का बखान करते नहीं थकते जो मैं अपने कई दशकों के साथ के बावज़ूद भी नहीं जान पायी, अभुगतनीय क़र्ज़ लेने वाले ज़रूरतमंद जो हम से अच्छी गाड़ियों में आते हैं, मेडिकल मसलों पर सलाह करने वाली पब्लिक , बच्चों की पढ़ाई और कैरियर काउन्सलिंग के लिए भी मुफ़्त सलहार्थी, बाप बेटे- भाई भाई - मोटियार लुगाई के झगड़ों के पंचायतोत्सुक इत्यादि इत्यादि. हालांकि जैसा कि मैंने पहले भी कहा, जब से मोबाइल/व्हाट्सऐप/ वीचैट/फेसबुक का प्रचलन बढ़ा है ऐसी ही कुछ ट्रैफिक वहां भी डाइवर्ट हो गयी है. अरे भूल ही गयी, इन सब के बीच रेगिस्तान में निखलिस्तान की तरह कुछ अच्छे लोग भी कभी कभी दिखाई देते हैं लेकिन बहुत कम. मज़े की बात, हमारे साहेबजी सब को बड़े प्यार से बड़े धैर्य से झेलते हैं☺सब कुछ जानते समझते हुए भी.....ज्ञानी अवधानी जो हैं.....उनकी खुद की बोली मनोविज्ञान की तकनीकी भाषा में हमारे साहबजी इम्प्रेसनेबल है.
अभी पिछले दिनों की बात है, एक सज्जन हमारे यहाँ आये और अवतारों पर बड़ी लम्बी चर्चा हमारे ड्राइंग रूम में हुई....चाय के कई रूप जैसे दूधवाली, पतली, तुलसी ऑर्गेनिक, ग्रीन टी....काली भूरी कॉफी....टी केक....बिस्किट...सन्देश समोसा....बर्फी कलाकंद पकौड़े.....चिप्स आदि अवतार उनकी गिनती में हालांकि नहीं थे,मगर बदस्तुर अवतरित हुए और विलीन भी हो गए☺ खैर उस दिन गीता के 'यदा यदा' के साथ ये पत्नीभक्त तुलसीदास जी की यह चौपाई भी गूंजी थी :
जब जब होहिं धर्म की हानि।
बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी।।
तब तब प्रभु धरि मनुज शरीरा।
हरहिं शोक मम सज्जन पीरा।।
बुद्ध के रीइनकार्नेशन, ईसा के रीसरेक्शन, साईँ बाबा,राधा माँ, कृपालु महाराज और ना जाने क्या क्या शब्द बम फूटे थे उस दिन. ऐसे मैं मुझे भी कई अवतार दिखे, ट्विटर, फेसबुक, मीडिया, राजनीती इत्यादि में. दिल कर रहा है मैं भी एक सीरीज लिख दूँ और नाम दूँ 'अवतार सीरीज'...…...क्या ख़याल है आप सब का ?☺☺☺☺
No comments:
Post a Comment