Monday, 26 September 2016

इंतज़ार की लज़्ज़त क्या कहिये.....


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पलकों से बुहारे काँटों को
ऐसी हो खिदमत क्या कहिये.

चाक है जेब ओ दिल दरिया
वल्लाह ये ग़ुरबत क्या कहिये.

आकाश से गिर खजूरांअटके
हाय री किस्मत क्या कहिये.

दिल से खुशबाश ,महबूब हँसे
ऐसी कोई जन्नत क्या कहिये.

औरों को गिरा दे नज़रों से
वो झूठी अज़्मत क्या कहिये.

सहरा में खिला दे फूलों को
रब की ये रहमत क्या कहिये.

महशर में मिले, हम मिल तो गए
इंतज़ार की लज़्ज़त क्या कहिये.

छुप छुप के निकलते हैं घर से
शोहरत की ये वहशत क्या कहिये.

(चाक=फटी हुई, ग़ुरबत=गरीबी,खुशबाश=खुश रहने वाला, अज़्मत=प्रतिष्ठा, सहरा=मरुस्थल, रहमत=कृपा, महशर=महाप्रलय, शोहरत=प्रसिद्धि, वहशत=भय.
वहशत के और अर्थ जंगलीपन या पागलपन भी होते हैं लेकिन यहाँ भय के अर्थ में ही लिया गया है.)

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