Monday, 26 September 2016

आलीजा जीव जळावो सा.... : विजया


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म्हारे जीवड़े म्हांली पीड़
सजनसा निजर घुमाओ सा,
म्हारे हिये उठै हब्बीड़
भंवरसा ध्यान दिरावो सा ।। स्थायी ।।

जब थे देखो मूळक ने
सै कळियां ज्यूँ खिल ज्याय
मीठा बचना झूमज्या
वे थाँस्यूं हिलमिल ज्याय,
इयां क्यूँ जीव जळावो सा ।। म्हारे ।।

पंछी मांड्यो पिंजरों सा
भरम रोट लटकाय
फंसग्यो माणस सान्तरो सा
ज्ञान घणो बघराय
घणा ना पाठ पढ़ावो सा ।। म्हारे ।।

नशो धतूरो आकरो सा
हर भाषा बुलवाय
चेप शहद रो मोकळो सा
सबदां स्यूं चिपकाय
इब सिरजण रीत निभावो सा ।। म्हारे।।

बिजळयां चिमके जोर की सा
घन बरस् घिणघोर
सोग (शोक) मिट्यो घस कलम ने सा
जोर मचावे शोर
थे सम्भळो, लेर् न जावो सा ।। म्हारे ।।

ओसो मोसो बोलियो सा
बात बात री तोड़
कूद फांद कर पड़ गया सा
मिटग्या सगळा झोड़
ध्यान निज मांय धरावो सा ।।म्हारे ।।

रामा थांरै बाग़ में सा
लामी बधी खिजूर
ल्याळ पड़न्ता नहीं समे सा
आदत स्यूं मज़बूर
जी टाण्डो बेग लदावो सा ।।म्हारे ।।

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