Friday, 2 September 2016

आत्ममुग्धता ....... :विजया



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याद दिलाती है
सेल्फी-कल्चर
आत्ममुग्धता की,
वो यूनानी पौराणिक कथा का
नायक नार्सिस जो
हो गया था आशिक
खुद के ही रूप का
देखकर अपना ही अक्स
पानी में,
देखता रहता था
होकर मुग्ध स्वयं को
पल प्रतिपल
होकर बेसुध कि
और भी बहुत कुछ है
दुनिया में.......
आज भी दिखेंगे
आसपास ऐसे 'आत्ममुग्ध'
जिन्हें भ्रम है
खुद के रूप रंग
ज्ञान और विद्वता
उदारता और व्यावहारिकता
चाल और चरित्र का,
कि 'हम' सा कोई नहीं
लाज्ज़हीनता
स्वार्थपरता
असंवेदना
क्रूरता
असहजता को जिये जाते हैं
ऐसे लोग,
दिखाकर नीचा दूसरों को
अस्वीकार कर स्वयं की त्रुटियो को
अहंकार मद में चूर
करते हैं
येनकेन प्रकारेण
बुलंद परचम अपना,
बिना नींव के ये कंगूरे
बन कर सूखी डाल किसी पेड़ की
झुकते नहीं
टूट जाते हैं
और हो जाते हैं विलुप्त
स्मृतियों से.....

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