Sunday, 14 February 2016

मर्म समझ कर मैं चली.. : विजया


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मर्म समझ कर मैं चली भ्रम हो गयो संग
स्वान भी पीछे हो लिए भंगित अंग उपंग !! १ !!

आखर की माया रची बहुत बनाए शब्द
चोट पड़ी जब जोर से हो गए हैं निस्तब्ध !!२!!

ज्ञान जो उपजे ह्रदय में बाकी सब बकवास
धूम-बदरिया से करे ज्यों बारिश की आस !!३!!

रग रग मेरी दुखती छुअन जगाये पीर
मीठे मीठे बेन भी देत करेजवा चीर !!४!!

भेख बनाया मोकरा ज्यों नाटक में भांड
टेढो मेड़ो डोल रह्यो ज्यूँ गलियन को सांड !!५!!

दर्द मेरो ही दर्द है पर की पीर पाखण्ड
मेरो सब कुछ सांच है औरन करे अफंड !! ६!!

कारज कारन जोड़ तो इसी जन्म की बात
जैसा कर वैसा ही भर चले साथ ही साथ !!७!!

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