मेरा नसीब है
क्यूँ खोजते हैं साँसे हम दफीनों में
तुम मिल ना सके मुझ को ये मेरा नसीब हैं .
तेरे दरीचों से अब भी आती है सदाएं मुझ को
क्या हुआ शबिस्तां में तिरे मेरा रकीब हैं .
क्यो करें सूरत-ए-हाल की तनकीद हरदम
रिश्तों के सफ़र-ए-रंज की इब्तिदा अजीब हैं .
ख्वाबों में भी सोचते हैं सिर्फ़ तुझको
दीवाना हूँ बेकल कहते मुझको मेरे हबीब हैं .
अजनबी भी जानते है हाले दिल मेरा
वो चुप क्यूँ हैं जो मेरे दिल के करीब है.
मुबारिक हो दुनिया की लालो-गौहर तुझ को
हम जैसों की किस्मत में शायद कोई सलीब है.
नविश्त-ए-दीवार को पढ़ नहीं सकते
क्यों कहे जाते है की 'सरूर'* एक अदीब है.
(*मैं 'सरूर' नाम से भी कहता हूँ.)
दफीनों =grave yards/कब्र
शबिस्तां =बेडरूम
तनकीद =क्रिटिसाइज़/आलोचना
बेकल=restless/आकुल व्याकुल
हबीब =फ्रेंड्स/दोस्त
लालो-गौहर =लाल और मोती
सफ़र-ए-रंज=दुखों की यात्रा
इब्तिदा =begining/शुरुआत
नविश्त-ए-दीवार=writting on wall.
अदीब=लिटररी पर्सन/साहित्यकार
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