खुदा बेहिसाब देता है 
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चश्म ना हो मगर प्यारे, खुदा तो ख्वाब देता है.
भला हो या कोई बुरा, खुदा बेहिसाब देता है..
जिंदगी जीना जैसे भी, तो जी लो खुशगिरामी से, 
वो चुभते खार देता है, तो खिले गुलाब देता है.
गरम तपती धूप में परीशां  होना है बेवाज़िब,
सहरा की तपिश में भी वो छाँव -ओ-आब देता है.
नफ़रत की इस हिमाकत से गिराते  रहते हो क्यों खुद को,
खुदा इंसान को मोहब्बत का महज रबाब देता है.
खुदी को इबादत में बुलंद कर पाता  है जो बंदा,
खुदा उस वली अल्लाह को, सर सुबह  अपना आदाब  देता है.
भटकता है तू राहों में, ज़ुस्तज़ु अर्शनशीं  की है,
वो बसता है दिलों में ही, सदा-ए-जवाब देता है.
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अर्श=ईश्वर के सिंहासन का स्थान/बैकुंठ/
नशीं= बैठने वाला 
 
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