Monday, 11 August 2014

पाप: धम्मपद से--(नायेदाजी)

पाप: धम्मपद  से 

# # # # 
पापी को
होता प्रतीत
सब कुछ 
अनुकूल एवं
अतिउत्तम ............
जब पर्यंत 
ना होता पाप
परिपक्व .

भरण होता
है पाप घट का
जब परिपूर्ण ;
दृष्टव्य होता
पापी को
अपना पाप
सम्पूर्ण .


(गौतम बुध के वचनों का सार  है: दूसरों को शारीरिक, मानसिक अथवा वैचारिक क्षति पहुँचना पाप है. पाप जब परिपक्व  होता है तब पाप कर्ता  अपने
पीड़ादाई  कर्मों को पूर्ण रूप से देखता है तथा अपने कर्मों के परिणाम और 
प्रभाव को अनुभव करता है.अपने कार्य -कलापों के प्रति"जागरूकता" हमें  अपनी ग़लतियों को समझाती  है और तत्क्षण अपने को सुधार कर हम उसके बुरे परिणामों को क्षीण कर सकते हैं :"सुख पहुँचाना  किसी को, खुद को सुखी बनाता  है, दुख
पहुँचाना  किसी को खुद को दुखी बनाता  है.........We are responsible for our own miseries.)

Inspiring Sootra from Dhammpad :
Paapopi passati bhadram, Yava paapam na pacchati,
Yaadatha pachati paapam, adha paapo paapani passati.
--------------------Gautam Budh.

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