उत्कंठा श्याम मिलन की
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(रचना की प्रस्तुति दो भागों में है.पहला भाग परिचय दे रहा है एक ऐसी कृष्ण भक्त 'नारी' का जो अपनी उत्कंठा को काव्य में ढालती थी और श्याम सलोने को अपने प्रेमी/जीवन साथी के रूप में देखती थी और उनसे मिलन की उत्कंठा को लिए साँसें लेती थी. शायद आप 'मीरा ' के लिए सोचने लगें है........जी नहीं, वो कोई और थी. दूसरा भाग एक रचना है जो उनके काव्य से प्रेरित है.)
श्री कृष्ण को समर्पित है यह प्रयास. नीलमय मनमोहन.......शरणम् मम:.
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परिचय एक अनूठी कृष्ण प्रेमिका का.....
कृष्ण भक्ति में दक्षिण भारत की आंटाल की भक्ति-परक रचनाओं का विशेष महत्व है.अंतल तमिलनाडु से थी और नवमी सदी उनका समय काल था. वो भी मीरा बाई की तरह श्री कृष्ण को अपने पति के रूप में देखती थी और विश्वास रखती थी की वो भी पिछले जन्म में एक गोपी थी. कृष्ण को अपने प्रेमी के रूप में देखती थी और उनसे ‘मिलन’ के लिए व्याकुल रहती थी. उनकी कृतियाँ जिनमें उन्होने कृष्ण प्रेम की अनूठी अभिव्यक्ति की है: ‘तिरुपव्वई’ और ‘ नच्चियार तिरुमोली'’ है. जहाँ मीरा (1498) के काव्य में भक्ति-मे ‘एक्सप्रेशन्स’ है वहीं आंटाल के काव्य में भक्ति के साथ श्रृंगार , कृष्णा के साथ शारीरिक संपर्क की उत्कंठा के रूप में, अभिव्यक्त हुआ है. उनके लेखन के मर्म में विचक्षण,अतिक्रमण, सहगामिता के भाव है और इन्ही बिंबो की कल्पना उन्होंने की है.
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उत्कंठा श्याम मिलन की...
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ना जाने कितने दिवस,
मंझधार में रही
लहराती मैं ……..
और भंवर में थी
अडोलित ………..
नयन मेरे रहे
तलाशते
श्याम-सलौने
वेंकटेश्वर को.
आज आई
रजनी मिलन की,
देह में मेरे
टूटन है
ऐंठन है ,
और मन है,
उल्लासित,
आनंदित
एवं
मद उन्मत्त.
मिलन -संयोग
की उत्कट
अदम्य
आकांक्षा से
वक्षोभ मेरे
हैं विकसित
और अधर हैं
रक्तिम…..
तन मन मेरा
है उत्सुक,
उल्लासित
और
अतिशय व्याकुल.
तीव्र -वेदना
दीर्घ विरह की
हाय !
दे गयी मुझको
पीड़ा का एक
असीम समुद्र.
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