Wednesday, 6 August 2014

ये कवि-नन्हे बच्चे...(नायेदाजी)

ये कवि-नन्हे बच्चे...

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ये कवि या शायर
होते हैं
उन नन्हे कोमल
बच्चों की तरह,
जो ना मिलने पर
तड़फते हैं
और
मिल जाने पर
झगड़ते हैं.

सुन के
सुना के
प्यासें बुझा के
प्यासें जगा के
निर्लिप्त निर्मोही से
लिये हुये
दिलों में
भरपूर मोहब्बतें,
उठा कर
डायरियां
अपनी अपनी,
बोलते बड़बड़ाते
आंसू बहाते
हँसते हंसाते,
लिये हाथों में हाथ
चल पडतें है.


(यह रचना उस वक़्त लिखी गयी थी जब हम कवि गोष्टियों में शिरकत कर लेते थे...जहाँ कहनेवाले भी कवि होते थे और सुनने वाले भी......एक ऐसा प्यारा मंजर था वह जिसमें बहुत अपनत्व महसूस होता था. )

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