Tuesday, 5 August 2014

जब लम्हा आखरी आये (नायेदाजी)

जब लम्हा आखरी आये
# # #
तू मेरा 
कोई नहीं,
मैं भी तो तेरी 
कोई नहीं,
कोई तो 
किसी का 
कोई नहीं.....

क्यों 
बैठे रहते हो 
दिन रात यूँ 
मेरे करीब,
कहती हूँ ना 
तुम से
तुम नहीं हो 
कोई यीशु,
जो चढ़ रहे हो 
सलीब.....

आई थी 
मैं अकेली
जाना है मुझे 
अकेला,
तुम संग 
जो बीता 
समझो 
था वो 
इक हसीन मेला...

चले थे 
जब तक
साथ
वो राहें थी 
अपनी,
जुदा जुदा है
मंजिल
क्या कथनी 
क्या करनी...

कब तक 
सहे जाओगे
दर्द तुम पराये,
कब तक
संभालोगे 
बोझिल से 
सरमाये.....

मानो मेरी
पहचानो ए दोस्त !
बरहना हकीक़त को,
पड़े हो
किस फेर में 
छोड़ो
अँधी अक़ीदत को...

फाना पजीर जिस्म से 
क्यों 
मोह इतना जताते हो,
दिये जा रहे हो 
तुम हर दम 
बदले में 
क्या पाते हो....

मत करो 
खुदकशी,
तुम को 
कसम हमारी,
हम देख लेंगे
खुद ही 
जो भी है
किस्मत हमारी..

रूहानी इस रिश्ते को 
अब जिस्मानी क्यों 
बनाते हो,
न जाने क्या 
निभाने को 
खुद को यूँ 
सताते हो...

थाम लेना 
हाथ मेरा 
जब वो मुझे 
लेने आये,
मुस्कुरा कर 
कर देना रुखसत 
जब लम्हा 
आखरी आये...

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