Tuesday 5 August 2014

चिरंतन और क्षणिक सुख:धम्मपद से (नायेदाजी)

चिरंतन और क्षणिक सुख : धम्मपद से

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प्रेरक सूत्र:

माता सुखा परिचागा, पाससे छे विपुलं सुखं,
चाजे मत्ता सुखं धीरो, सम्पस्सम विपुलं सुखं.
-------------गौतम बुद्ध

क्षण में पाया
क्षण में गंवाया
सुख या
प्रसन्नता होती है
क्षणभंगुर -
अल्पायु.

क्षण में पाया
क्षणों में समाया
सुख या
प्रसन्नता होती है
चिरायु.
क्षणभंगुर
सुख नहीं है
सत्य.
सुख सनातन होता
सत्य.

बुद्धिमान करे
प्रयास शुभ पाने
सुख
चिरंतन-
सनातन.

गवांये
निज जीवन, करे
लालसा
क्षणिक
सुखों की,
मूढ़ मनुज
नादान

('i live in moments' बहुतों के मुंह से सुनते है आज कल...या 'i live in present' बहुत अच्छा स्टेटमेंट है यह. लेकिन यह अपने टेम्पटेशन से जनित कार्य-कलापों का 'कवर' बहुत दफा होता है........जीवन कुछ नहीं क्षणों का एक जमावाडा है......उनमें हर क्षण हम सुख से जियें तो सुखी हो सकतें है.......पर वोह सुख ऐसा हो जो अगले क्षण 'कंटीन्यू ' करे या वैसे ही सुख तो उत्पन्न करे अगले क्षण में....यह तभी हो सकता है जब हम 'शोर्ट टर्म' व्यू से निजात पा कर 'लॉन्ग-टर्म' व्यू अपनाएं.....अपने क्षण के लिए माकूल गतिविधि का चुनाव करें....हमें ज्ञान की ताकत इसीलिए मिली है....चाहे हम 'क्षण' में जियें या 'मोमेंट्स' में.)

-नायेदा

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