पन्ने (दीवानी सीरीज)
जब हम साथ थे तो एक दिन उस ने कहा था:
# # #
"मन की किताब के
हजारों अध्याय
उलट दिए मैने
किन्तु अभी तक
यह नहीं हो पाया
एहसास कि
पहला
और
आखरी
पृष्ठ
कौन सा है ?"
________________________________________ ___________
मैने उससे विमर्श करते हुए, गरम चाय की प्यालियों में उठती हुई भापों कि सौरभ के बीच कुछ ऐसा सा मंतव्य व्यक्त किया था:
# # #
तुम किताब को नहीं
शायद किताब
पढ़ रही हैतुम को,
मगर तू ने
ठीक ही कहा
तुम कहाँ पढ़ रही हो
किताब को
तुम तोपलते जा रही हो
महज़ पन्ने.....
ऐसे में क्या
फर्क पड़ता है
कौनसा सफा
आगाज़ है
और
कौनसा आखिर.....
बंद करो यह
खिलवाड़
किताब को
पढने वाले
सफे नहीं
पलटते
सफे नहीं
गिनते
आगाज़
और
आखिर को
नहीं देखते
बस पढ़े जाते हैं,बस पढ़े जाते हैं.....
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"मन की किताब के
हजारों अध्याय
उलट दिए मैने
किन्तु अभी तक
यह नहीं हो पाया
एहसास कि
पहला
और
आखरी
पृष्ठ
कौन सा है ?"
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मैने उससे विमर्श करते हुए, गरम चाय की प्यालियों में उठती हुई भापों कि सौरभ के बीच कुछ ऐसा सा मंतव्य व्यक्त किया था:
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तुम किताब को नहीं
शायद किताब
पढ़ रही हैतुम को,
मगर तू ने
ठीक ही कहा
तुम कहाँ पढ़ रही हो
किताब को
तुम तोपलते जा रही हो
महज़ पन्ने.....
ऐसे में क्या
फर्क पड़ता है
कौनसा सफा
आगाज़ है
और
कौनसा आखिर.....
बंद करो यह
खिलवाड़
किताब को
पढने वाले
सफे नहीं
पलटते
सफे नहीं
गिनते
आगाज़
और
आखिर को
नहीं देखते
बस पढ़े जाते हैं,बस पढ़े जाते हैं.....
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