Wednesday 30 July 2014

लिखता रहूँ.....

लिखता रहूँ.....

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टांग दिये
झरोखों पर
मोटे परदे,
फुहारें बारिश की
मगर
दिये जा रही
दस्तक
अब भी...

ना देख पाए
कोई रात के
अँधेरे में ,
उभर आएगी
सिलवटें ज़िन्दगी की
होगी रोशनी
थोड़ी सी
जब भी...

चला जाऊंगा
एक दिन
मैं यकायक,
महसूस
शिद्दत से
दीवारों को
मिरा साथ
तब भी...

बच भी जाऊँ
एक मदहोशी से
ये किस्मत मेरी,
बिखरे पड़े हैं
मगर
दुनियां में कितने
तर्गीब
अब भी...

छिन भी जाए
कागज कलम
ओ-रोशनाई मुझ से,
लिखता रहूँ
आसमाँ पर
तेरा नाम
तब भी...

तर्गीब=प्रलोभन

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