Tuesday 29 July 2014

किये जा रहे हैं प्रश्न प्रलाप :

किये जा रहे हैं प्रश्न प्रलाप 

######

कुछ प्रश्न
नहीं होते
अभिव्यंजना
जिज्ञासा की
होते हैं
प्रत्युत
प्रतिक्रियाएं
स्वयं द्वारा
स्वयं के
अहम् पर लगे
किसी आघात-प्रतिघात की
अथवा
कृत्य कोई
कुंठा जनित
प्रत्याक्रमण का ...

ना जाने
प्रारब्ध के
किस वरदान स्वरूप
हो जाता है
प्राप्य
यदि
हमें कुछ ऐसा
नहीं होते
किंचित भी
हम पात्र जिसके ,
दुश्चिंता 'मैं और मेरे' की
कर देती है
विस्मृत
उस शुभ को
और
करने लगते हैं हम
अपरिमित वमन
गरल का
बना कर
कृतघ्नता को
स्थानापन्न
अहोभाव का .....

नैसर्गिक
अमृत अवदान से
हुआ था प्राप्य
भावविहीन शुष्क
नयनों को
अनुभव
आनन्द का,
अतृप्त वासनाओं की
क्रीडा में
हुआ था
घटित
सहज संसर्ग
दिव्य देह का....

प्रेम तो है
वस्तुतः
अनामय,निर्विकार,
अगण्य चिर सत्व ,
काश !ना बनायें
उसको
हम विषयवस्तु
व्यावसायिक व्यवहार की
करते हुए
संकीर्ण आकलन
देने और पाने का ...

ज्योत्सना
पावन प्रेम की
कैसे कर पाती
शीतल
ईर्ष्या संतप्त मन को,
ना जाने क्यों
तलाश रहे हैं
हम
छद्म प्रेम के नाम
अपने ही खोखलेपन को
भरने का उपाय
जन जन में....

डूबे हैं
आकंठ हम
आधिकारिकता ,
मत्सर
एवम
प्रदर्शन के
सघन दलदल में ,
जान कर बने हैं
अनजान हम
तथ्यों और
सत्यों से
किये जा रहे हैं
प्रश्न प्रलाप :
क्या किया तू ने ,
क्या दिया तू ने ,
मतिभ्रम से
हो कर विक्षिप्त
पल पल में....

No comments:

Post a Comment