Tuesday, 29 July 2014

मुलाक़ात होती रही.......

मुलाक़ात होती रही...
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ह़र करवट पे मुलाक़ात उनसे होती रही
बन्द होठों से दिल की ह़र बात होती रही.
इस तरफ थे या उस जानिब क्या जाने
ह़र छुअन में हासिल इनायात होती रही
.
जबींसाई थी के जबीं को चूमना उनका,
ईमा ईमा में बरपा इल्तिफात होती रही.
गुलाबी चादर थी के गुलाब ख्वाजा के ,
घुल के दो से यक,दो बसीरात होती रही.
ना भीगे थे जिस्म बस हुई थी नम आँखें
नवाजने रूह को कैसी बरसात होती रही.
(जबींसाई =नम्रता से माथा टेकना, जबीं =ललाट, ईमा= संकेत,बरपा=उपस्थित
इनायात=मेहरबानियाँ,इल्तिफात= कृपा,बसीरात=अंतर-दृष्टियाँ,प्रतिभाएं,
नवाजना =सम्मानित करना.)

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