Wednesday 30 July 2014

खोकर तुझको क्या पाउंगी :~ ~

खोकर तुझको क्या पाउंगी :~ ~

इस कविता में वर्णित भाव किसी के हैं, जो बहुत वर्षों पूर्व किसीने व्यक्त किये थे, बस मैने सिर्फ शब्द दिये थे, आज अनायास ही किसी पुस्तक में दबी यह तहरीर हाथ लाग गयी, आप से शेयर कर रहा हूँ।

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खोकर तुझको
क्या पाउंगी
मेरे सपनों के
रखवाले,
यौवन मद में
चूर बहुत है
आज भी मुझ को
चाहनेवाले,
खोकर तुझको
क्या पाउंगी
मेरे सपनों के
रखवाले,

देह कमल का
खिलना भी क्या,
दोराहों पर
मिलना भी क्या,
चार कदम का
साथ निबाह कर
बीच राह में तजने वाले,
खोकर तुझको
क्या पाउंगी
मेरे सपनों के
रखवाले.

उसर भूमि को
करके सिंचित
प्रेमांकुर
फूटाये तुम ने,
सूने घर की
दीवारों पर
भव्य चित्र
सजाये तुम ने,
आज चले मुंह मोड
अचानक
शब्दों से बहलानेवाले,
खोकर तुझको
क्या पाउंगी
मेरे सपनों के
रखवाले.

तन नश्वर और
क्षण भंगुर है,
आत्मा मेरी
अजर अमर है,
किस को छोड़ा
किस को पाया,
नित नूतन
स्वांग रचानेवाले,
खोकर तुझको
क्या पाउंगी
मेरे सपनों के
रखवाले.

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