Wednesday, 30 July 2014

महक उठा यह चन्दन वन है ..

महक उठा यह चन्दन वन है ..

########

धूप छाँव अशब्द विन्यास से
बनता जीवन का दर्शन है...

जीना नहीं है वांछा केवल
ऋण बंधन भी असर दिखाते,
रेखाओं की सीमाबंदी में
एहसास दिलों के अंकन पाते,
रे मन देख भुजंग आलिंगन में
महक उठा यह चन्दन वन है....

उलझा मन क्या सच पहचाने
नकाब मुखौटों को वह माने,
असली सूरत भूल गए सब
बस किरदार निभाना जाने,
हँसे भीड़ जो कर कर तंज
मैं सोचूं यह शत शत वंदन है...

थोड़ी भी मुश्किल जो आये
होश मेरे क्यों उड़ उड़ जाये,
सुन भिन भिन कीट-पतंगों की
ध्यान मेरा यूँ डिग डिग जाये,
उड़ान अनगिन पंखों की चाहे
नहीं चंचल यह नील गगन है...

No comments:

Post a Comment