अनलिखे असआर पढ़े जा रहा हूँ मैं....
(कोई पच्चीस से ज्यादा साल पहले लिखी यह आशु रचना पुराने कागजों में मिल गयी, आप से शेयर कर रहा हूँ..भाषा और तकनीक के नज़रिए से कुछ खामियां है लेकिन यह 'raw nazm'' आपके मन भाएगी उम्मीद करता हूँ.)
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जिस्म तेरा है जैसे कोई कागज़ कोरा
तहरीर-ए-मोहब्बत लिखे जा रहा हूँ मैं,,,
पोशीदा तेरे बालों में ज्यों हर्फे मोहब्बत
अनलिखे असआर पढ़े जा रहा हूँ मैं,,,
लिख दी है नज़्म लबों से ज़बीं पर
माथे की लकीरों को पढ़े जा रहा हूँ मैं,,,
ये तेरी बिंदिया आगाज़ मेरे जहान का
चल चल के क्यूँ ऐसे थमे जा रहा हूँ मैं,,,
झांकती हैं मेरी आँखें तेरी आँखों के सागर में
बिन पीये कोई मय लड़खड़ा रहा हूँ मैं,,,
चमके जो रुखसारों पे मोहब्बत का गुलाल
दीवाली के दिन भी होली खेले जा रहा हूँ मैं,,,
मुंदती है मेरी आँखें चमके हीरा तेरे नाक का
न जाने किस राह पे चले जा रहा हूँ मैं,,,
बिन बोले गा रहे हैं लब तेरे रुबायियात
खुशबु-ए-ख़ामोशी सुने जा रहा हूँ मैं,,,
चिबुक तेरा उठा कर झाँका जो मैंने तुझमें
ये क्या हुआ के तुझमें समाये जा रहा हूँ मैं,,,
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जिस्म तेरा है जैसे कोई कागज़ कोरा
तहरीर-ए-मोहब्बत लिखे जा रहा हूँ मैं,,,
पोशीदा तेरे बालों में ज्यों हर्फे मोहब्बत
अनलिखे असआर पढ़े जा रहा हूँ मैं,,,
लिख दी है नज़्म लबों से ज़बीं पर
माथे की लकीरों को पढ़े जा रहा हूँ मैं,,,
ये तेरी बिंदिया आगाज़ मेरे जहान का
चल चल के क्यूँ ऐसे थमे जा रहा हूँ मैं,,,
झांकती हैं मेरी आँखें तेरी आँखों के सागर में
बिन पीये कोई मय लड़खड़ा रहा हूँ मैं,,,
चमके जो रुखसारों पे मोहब्बत का गुलाल
दीवाली के दिन भी होली खेले जा रहा हूँ मैं,,,
मुंदती है मेरी आँखें चमके हीरा तेरे नाक का
न जाने किस राह पे चले जा रहा हूँ मैं,,,
बिन बोले गा रहे हैं लब तेरे रुबायियात
खुशबु-ए-ख़ामोशी सुने जा रहा हूँ मैं,,,
चिबुक तेरा उठा कर झाँका जो मैंने तुझमें
ये क्या हुआ के तुझमें समाये जा रहा हूँ मैं,,,
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