गीत वही मैं गाऊंगा
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सोया हूँ आगोश में तेरे
आज नहीं मैं जागूँगा
स्पर्श स्वप्न का मुग्ध कर रहा
भान तुम्हारा दग्ध कर रहा
सोने दो ना आज मुझे
कल निश्चय मैं जागूँगा,,,,
अर्पण की घड़ी अभी सजी है
ग्रहण वीणा भी नहीं बजी है,
सतत क्रम रखना देने का
कल अवश्य मैं मांगूंगा...
गीतों के जो बन्द तुम्हारे
निशब्द बसे हृदय में सारे
आज स्वर मौन है मेरे
कल गीत वही मैं गाऊंगा...
बीज मृदा में दबा है गहरा,
है ऊपर से समय का पहरा
अंकुर खिला कोंपल मुसकाई
बसंत बहार मैं लाऊंगा...
अन्तराल है मात्र कल्पना
तेरा मेरा साथ ना सपना
आज मुझे जाने दो सजनी
क्या मैं कभी न आऊंगा ?.....
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