Monday, 28 July 2014

तस्वीर से आती आवाज़...

तस्वीर से आती आवाज़...


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चंचल लहरों के
मध्य ,
सजन
प्रकट
हो जायेगा,
होले से
आकर
वो अचानक
मेरे
निकट
हो जायेगा...

व्याकुल हूँ
आतुर हूँ
तड़फ मेरे
रौं रौं में है
छू ले मुझे
अंग लगाले
चाहत यही
अंतर में है..

निष्ठुर ऐसा
नज़र ना डारे
कसक फिर भी
तन मन में है,
बदन है भीगा
उमंग शिखर पर ,
दिखता वो
कन कन में है..

बहते धारे में
सिमटी हूँ
जैसे आगोश
तुम्हारा है,
जुग जुग से हूँ
संग तुम्हारे
आलम अपना
सारा है ...

कल-कल में
हैं
बातें तेरी,
ठंडक में भी
बसा है तू,
हवा है तुझको
छूकर आती
तू ही छाया है
हर सू...

बसता
धडकन
धडकन
तू ही ,
हर अंग
तुझी को
अर्पण है,
समझ सका ना
दे ना पाया
कैसा तू
निर्दय
कृपण है...

मुस्कान मेरी के
बाशिंदे तुम,
नज़रों में
समाये हो
हर पल,
तुम दूर रहे
प्रियतम तो
क्या
मैं पास
तुम्हारे हूँ
प्रति पल...

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