Sunday, 3 August 2014

ऐ ज़िन्दगी तू मुझे ना सताना (Nazmaa)

ऐ ज़िन्दगी तू मुझे ना सताना 
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ऐ ज़िन्दगी तू मुझे ना सताना 
मेरी  कहानी तेरा है फ़साना  !! ऐ ज़िन्दगी !!

जो कुछ दिया तू ने, मैंने लिया है 
ज़हर भी पिलाया तो उसको पिया है
अब तो तू मुझको अमृत पिलाना !! ऐ ज़िन्दगी !!

बहुत कुछ सहा और कुछ ना कहा है 
आँखों से मेरे तो दर्द ही बहा है 
तू साथ दे चाहे दुश्मन ज़माना !! ऐ ज़िन्दगी !!

हर मोड़ मेरी  परख की घड़ी है
तेरा साथ है तो मुझे क्या पड़ी है 
तू संग है तो क्या शहर या वीराना !! ऐ ज़िन्दगी !!

छीना ज़माने ने तू ने दिया जो 
ज़ख्म जो मिला मुझको तू ने सिया वो 
मेरी इन चौटों को तुम ही सहलाना  !! ऐ ज़िन्दगी !!

जब भी कहा मैंने तुमने सुना है 
बीच हजारों के मुझे ही चुना है 
गुज़ारिश मेरी बस तुम साथ निभाना !! ऐ ज़िन्दगी !!

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