मिथ्या ( संग्रह से)
#########
वृहद् चर्चा सत्य की हमारी
होती देने छद्मावरण स्व -मिथ्या को,
मिथ्यावाक् देता है वैशिष्ठ्य हम को,
आविष्करण झूठ का हम करते
हेतु करने भ्रमित जगत को
प्रति हमारी ज्ञानोपल्बद्धि के,
प्रयास हमारा रहे सतत यह
करने सिद्ध केवल हम ज्ञाता
अन्य मूढ़ है या अज्ञानी
उनको समझ है कुछ नहीं आता,
करते अलंकृत हम असत्य को
यौक्तिकीकरण करते मिथ्या का,
प्रस्तुत असत्य को सत्य बताकर
आयोजन हम गहन बनाते
मूर्ख बना औरों को मित्रों
सदा अकिंचन सुख हम पाते,
उत्सव मनाते हर्षित हो हम
कुशल स्वयं के सिद्ध होने का
करके निरंतर पोषण मत
अन्यों के निर्बुद्धि होने का ,
अहम् है झूठ सर्वोपरि विश्व का
किन्तु हमें लगता है मोहक,
अहम् यात्रा करें निरंतर
अन्य मान का बन कर शोषक,
'मैं' को लगता है अच्छा सदैव
विशेष स्वयं को अनुभव करना,
स्वार्थ हेतु निश्वास निबाहना
संकीर्ण दृष्टि से जीते जाना,
झूठ जीए लिये अवलंबन
अनुयायी या अंध भक्तों का
सत्य मुक्त है स्वयं समर्थ है
मोहताज़ नहीं है आस्क्तों का,
संग सत्य के खड़ी चेतना
मिथ्या को देने प्रताड़ना,
मिथ्यात्व कसे बंधन में हमको
विमुक्त करे सत्यता हमको...
वृहद् चर्चा सत्य की हमारी
होती देने छद्मावरण स्व -मिथ्या को,
मिथ्यावाक् देता है वैशिष्ठ्य हम को,
आविष्करण झूठ का हम करते
हेतु करने भ्रमित जगत को
प्रति हमारी ज्ञानोपल्बद्धि के,
प्रयास हमारा रहे सतत यह
करने सिद्ध केवल हम ज्ञाता
अन्य मूढ़ है या अज्ञानी
उनको समझ है कुछ नहीं आता,
करते अलंकृत हम असत्य को
यौक्तिकीकरण करते मिथ्या का,
प्रस्तुत असत्य को सत्य बताकर
आयोजन हम गहन बनाते
मूर्ख बना औरों को मित्रों
सदा अकिंचन सुख हम पाते,
उत्सव मनाते हर्षित हो हम
कुशल स्वयं के सिद्ध होने का
करके निरंतर पोषण मत
अन्यों के निर्बुद्धि होने का ,
अहम् है झूठ सर्वोपरि विश्व का
किन्तु हमें लगता है मोहक,
अहम् यात्रा करें निरंतर
अन्य मान का बन कर शोषक,
'मैं' को लगता है अच्छा सदैव
विशेष स्वयं को अनुभव करना,
स्वार्थ हेतु निश्वास निबाहना
संकीर्ण दृष्टि से जीते जाना,
झूठ जीए लिये अवलंबन
अनुयायी या अंध भक्तों का
सत्य मुक्त है स्वयं समर्थ है
मोहताज़ नहीं है आस्क्तों का,
संग सत्य के खड़ी चेतना
मिथ्या को देने प्रताड़ना,
मिथ्यात्व कसे बंधन में हमको
विमुक्त करे सत्यता हमको...
No comments:
Post a Comment