Monday 4 August 2014

पैगाम-ए-इज्तिरार : (नायेदाजी)

पैगाम-ए-इज्तिरार : नायेदा जी 

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छुअन से उसकी दिल को क़रार आ गया
जुबां पे बरसों से रुका इज़हार  आ गया.

पिघली थी मैं तमाज़त -ए-आफताब में
बागबाँ से मिलने कोई गुलज़ार आ गया.

मेरे मुक़द्दर में ना थी तन्हाई गोया
चारागर बन शहर-ए-दिल-ए-आज़ार आ गया.

पिन्हा किए थे मता-ए-दीद-ओ-दिल को हम
लूटने जालिम क्यूँ  सरे  बाज़ार  आ गया.

बढ़ने लगे थे जुनून से सुकून की  जानिब
कुछ ऐसा हुआ के पैगाम-ए-इज़तिरार आ गया.

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(क़रार= आराम इजहार व्यक्त करना ताजामत =गर्मी
आफताब=सूरज,  बागबाँ=माली गुलज़ार=बगीचा
मुक्क्दर =भाग्य, तन्हाई=एककीपन चारागर=वैद्य
शहर-ए-दिल-ए-आज़ार=दिल-रूपी बीमार शहर. पिन्हा =छुपाया हुआ
जुनून=उन्माद,  सुकून=शांति,  पैगाम=संदेशा, इज्तिरार=व्याकुलता.)

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