पैगाम-ए-इज्तिरार : नायेदा जी
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छुअन से उसकी दिल को क़रार आ गया
जुबां पे बरसों से रुका इज़हार आ गया.
पिघली थी मैं तमाज़त -ए-आफताब में
बागबाँ से मिलने कोई गुलज़ार आ गया.
मेरे मुक़द्दर में ना थी तन्हाई गोया
चारागर बन शहर-ए-दिल-ए-आज़ार आ गया.
पिन्हा किए थे मता-ए-दीद-ओ-दिल को हम
लूटने जालिम क्यूँ सरे बाज़ार आ गया.
बढ़ने लगे थे जुनून से सुकून की जानिब
कुछ ऐसा हुआ के पैगाम-ए-इज़तिरार आ गया.
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(क़रार= आराम इजहार व्यक्त करना ताजामत =गर्मी
आफताब=सूरज, बागबाँ=माली गुलज़ार=बगीचा
मुक्क्दर =भाग्य, तन्हाई=एककीपन चारागर=वैद्य
शहर-ए-दिल-ए-आज़ार=दिल-रूपी बीमार शहर. पिन्हा =छुपाया हुआ
जुनून=उन्माद, सुकून=शांति, पैगाम=संदेशा, इज्तिरार=व्याकुलता.)
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