Tuesday 5 August 2014

गणित उम्र का -कहाँ से है शुरू (नायेदाजी)

गणित उम्र का -कहाँ से है शुरू 
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(बुद्ध  का समझाने का तरीका अनूठा था....."example is better than percept"वाला.....स्थिति सामने ले आते......खुद समझो......उस वक़्त कहने का भी सही अर्थ पहुँचता लोगों के ज़ेहन  में.....राजा प्रसेनजीत और  गौतम बुद्ध  की मुलाकात को इस रचना का विषय  बनाया है......मात्रा/छंद  की भूलों को क्षमा करें.
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प्रसेनजीत सम्राट सुपरिचित बुद्ध -दर्शन को आए थे,
चर्चा करने तथागत से, मन  जिज्ञासु लाए थे.

सत्संग विग्रह ना हो पल भर, भिक्षु सर्व सहमाए थे,
यद्यपि उत्सुक और उत्कंठित  मन  सब के ललचाए थे.

वयोवृद्ध  ध्यानी भिक्खु  को धम्म कार्य  से जाना था,
चरणस्पर्श कर गौतम का, आशीर्वचन  ही पाना था.

होने वाला था सूर्यास्त, व्यग्र भिक्खु  था जाने को,
हो विवश हुआ उपस्थित, प्रभु अनुमति को पाने को.

राजन ! जाना मुझे अति दूर  है, संदेश बुध का देने को,
कई  माह की मेरी योजना, हाज़िर हूँ शुभ -स्पंदन लेने को.

भिक्खु  पचहतर साल उम्र  का,बुद्ध  चरण का स्पर्श करे,
भन्ते ! संबोधन पाकर, वह  उर में अत्यंत हर्ष करे.

बोले गौतम-हे भन्ते! कितने वर्ष आपकी आयु है,
केवल चार वर्ष बोला है भिक्खु , विस्मित भूप स्नायु है.

आश्चर्य चकित हुआ नृप , बुद्ध  ने क्यों इसे स्वीकार किया,
वृद्ध  के मिथ्या वचनों का क्यों ना कोई प्रतिकार किया.

रुक ना सका भूप उद्व्गिन -नहीं लगता चार वर्ष का यह,
गणना पड़ती  भिन्न  यहाँ, बुद्ध  स्वीकारे सहर्ष ही यह.

बुद्ध के सुवचन:

जब तक मनुज उतरे ना ध्यान में, प्राप्य उसे प्रकाश ना हो,
उमर देह की है तब तक, चाहे गणित आकाश-विकाश का हो.

आलोक पाकर अंतर का जब, झलक स्वयं की पाता  है,
तंद्रा में तो गयी उमर, फिर नया जन्म वह पाता  है.

भिक्खु  के साल इकहतर तो अज्ञान निद्रा में बीत  गये,
वर्ष सहस्त्र  कईयों  के तो यूँही तंद्रा में रीत गये.

इस  भिक्खु  ने चार वर्ष से, निज प्रतिबिंब को दर्शा है,
राजन ! इसीलिए इसने अपनी इस लघु वयस  को स्पर्शा है.

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उलझन में था नरेश सौभागी, मुक्ति दाता पास खड़े,
अश्रुपूरित भूपति हो विभोर, सिद्धार्थ बुद्ध के पाँव पड़े.

प्रसेनजीत बोला भगवान ! अब  तक था यह भ्रम मेरा,
जीवित हूँ साँस ले रहा हूँ चलना फिरना बस क्रम मेरा.

आज आपने सत्य  दर्शाया,भूप नहीं मैं  मुर्दा हूँ,
अपने ही ‘स्वयं’ के उपर, मैं अज्ञान का परदा हूँ.

बुध सुवचन :

राजन! धन्य हो, जाना तुम ने सत्य  यही जीवन का है,
जागरूक हो!शुद्ध  बनो तुम, यही कृत्य सद -जीवन का है.

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ध्यान ज्ञान पर चल कर प्रसेनजीत, पुन: जन्म  को पाता है,
आत्म-लक्ष्य को पाकर नृपति , स्वयं पति बन जाता है.

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