सावन जा चुका है
(यह रचनाएँ हमारे दो मित्रों (कपल) के जीवन के एक ऐसे फेज़ पर आधारित है, जो 'ईगो' क्लॅश के चलते बिछड़ गये थे. प्रभु की कृपा, मैत्री भावनाओं का प्रभाव, और अंकित के प्रयास (as usual he was also in the 'पार्श्व') के बदौलत उनका पुनर्मिलन हुआ और आज बहुत प्रसन्न और सुखी है.)
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तुम्हारी
प्रतीक्षा
बीते समय की
बात हो गयी है
बसंत
जो जा चुका है..
अब मुझ में
वो सामर्थ्य
भी नहीं है
तुम्हे रोक सकूँगी और
सावन
भी तो जा चुका है.
मेरी जिजीविषा भी
अब मेरी ना रही.
और…………….
“जीवन क्या है ?”
भूल गयी हूँ
मैं .
तथापि
मेरा वातायन
खुला है
एवं द्वार है बंद,
श्वांस लेना भी तो
आवश्यक है ???
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