रिश्तों के रखाव में : किसुन - सुदामा
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रिश्तों के
रखाव में
सहजता का
अभाव क्यों.........?
सुनते हैं
हर रोज़ के
रिश्ते और दोस्ती
होते हैं
बराबर वालों में
अच्छे,
कोई बड़ा
कोई छोटा
न हो सकते
दिलबर सच्चे,
किसुन ने
सुदामा को
गले से था लगाया
ब्रह्माण्ड का वो
मालिक
राज-गद्दी से
उतर आया
आलम के सरकार ने
जज़्बा यारी का
यूँ निभाया
ग़रीब के पांव को
आंसुओं से था धुलाया
फटी पोटली ने
चावलों को था बिखराया
मुठ्ठी भर भर के
भगवन ने था खाया..........
जय उसकी बोलते हुए
हमारा यह
स्वभाव क्यों..............?
रिश्तों के रखाव में
सहजता का अभाव क्यों........?
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रिश्तों के
रखाव में
सहजता का
अभाव क्यों.........?
सुनते हैं
हर रोज़ के
रिश्ते और दोस्ती
होते हैं
बराबर वालों में
अच्छे,
कोई बड़ा
कोई छोटा
न हो सकते
दिलबर सच्चे,
किसुन ने
सुदामा को
गले से था लगाया
ब्रह्माण्ड का वो
मालिक
राज-गद्दी से
उतर आया
आलम के सरकार ने
जज़्बा यारी का
यूँ निभाया
ग़रीब के पांव को
आंसुओं से था धुलाया
फटी पोटली ने
चावलों को था बिखराया
मुठ्ठी भर भर के
भगवन ने था खाया..........
जय उसकी बोलते हुए
हमारा यह
स्वभाव क्यों..............?
रिश्तों के रखाव में
सहजता का अभाव क्यों........?
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