Tuesday 5 August 2014

औकात नहीं : (नायेदाजी)

औकात नहीं
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जुस्तजू हुई मेरी रायदां यह भी कोई बात नहीं
संग चाहा था जिंदगी का आज तेरा साथ नहीं.

दम घुटना था मुकद्दर में क्या करता चारागर
कुचला गया मारा गया उसमें तेरा हाथ नहीं.

मेरी एहतियाते नज़र खा गयी धोखा गुमां में
अंजाम मेरी गफलत का तेरी कोई सौगात नहीं

रौनके बहार-ए-गुल गुल-ओ-गुलिस्तां गयी
तुम बिन हुई महफ़िल वीरान कोई बात नहीं

हमने दिया था खुद को बिछाई बिसात तुम ने
इश्क की लगी बाजी में कोई शह-ओ-मात नहीं.

बसी है तेरी तस्वीर दिल-ओ-जेहन में ऐ सनम !
मिटा दे उसको या के उड़ा दे कोई औकात नहीं.

(जुस्तजू=तलाश, रायदां= व्यर्थ, चारागर=वैद्य, एहतियात-ए-नज़र=दृष्टि की सावधानी, रौनक-ए-बाहर-ए-गुल-ओ-गुलिस्तां=उपवन और फूलों की शोभा)

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