Friday, 1 August 2014

जीया है आज मैंने फिर से (मेहर)

जीया है आज मैंने फिर से

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सुनो !
जीया है आज 
मैंने 
फिर से
तेरे साथ को, 
मिल गए हैं 
जवाब मुझ को 
कई अनबुझे 
सवालों के.....

तू शायद 
माने या 
ना माने 
होकर 
दूर तुम से
जाना है मैंने 
आज 
तुम को 
सच में..

दिए है 
बोल मैंने 
उस वक्त की 
अपनी 
बेतरतीब
आवारा 
चुप्पी को 
और 
दिया है 
मौन 
अपने
बोले अबोले  
बोलों को....

कैसा
एहसास है,यह 
कैसा है 
पछतावा
काश !
कर पाती मैं 
यह सब 
उन्ही लम्हों में,
तो होते शायद 
तुम 
आज 
पास मेरे... 

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