Tuesday 5 August 2014

गर्व से कहो हम स्वयं है (अंकितजी)

गर्व से कहो हम स्वयं है

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कृष्ण, बुद्ध , महावीर, ईसा , मुहम्मद ने,
ना चाहा था कि ,
उनकी 'ब्रांड' लगा कोई 'प्रॉडक्ट' हो.
हिंदू,बौध, जैन, इसाई, इस्लाम नामों से,
कोई धर्म हो.

हम जैसों ने उनकी सोचों में,
पायी  थी सच्चाई .
अंधकार को चीर ,
आगे  बढ़ जाने की प्रेरणा.

पहली-दूसरी पीढ़ी ने सुन कर,
प्रशस्त  किया था निज मार्ग.

फिर आई थी नकलचियों 
की एक भीड़.
जिसने गढ़  ली थी अपनी अपनी परिभाषाएँ.
बना डाले थे नागपाश  से कुछ  बंधन,
और बाँट लिया था मानवता को.

मनिषीयों ने मुक्ति की बातें की थी,
अपने से अपने को जगाने का उद्घोष दिया था.
कहा था,
तुम्हे अपना मार्ग स्वयं बनाना है,
किसी के पद चिन्हों  पर चल खुद को नहीं खोना है.

किंतु बहुरुपीयों को भय था,
भीड़ हाथ से ना निकल जाए,
और ढाल लिए थे बौध,जैन मुस्लिम, ईसाई और हिंदू.

कैसी नफ़रत फैलाई है,
मोहब्बत की आड़ में इन ज़ालिमों ने.
कहतें है बातें विश्व बंधुत्व की,
पर ना एक मुस्लिम एक हिंदू का बंधु बन सकता है,
और ना ही एक क्रिस्तान  एक बौद्ध  को गले लगा सकता है.

अपनी अपनी घोर अंधेरी कोठरियों को,
समझ बैठें है ये विश्व.
भटका रहे है हम तुम सबको,
आड़े टेढ़े  तिरछे  रास्तों पर.
जो रास्ते महज रास्तों में ही पाबंद है,
ना पहुँचा सकेंगे हमको मंज़िल तक.

आओ इन पोते हुए रंगो को धो डालें,
करें अपनी शुरुआत खुद से,
और गर्व से कहें:
हम 'स्वयं' हैं.
हम 'स्वयं' हैं.
हम 'स्वयं' हैं.

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