Friday, 1 August 2014

कदमों में तेरे ....(मेहर)

कदमों में तेरे ....
######## 
देखा मैंने 
कदमों में तेरे 
जाना भी
आना भी..

सजाई है 
अलविदा ने 
खुद ब खुद 
महफ़िल 
खैरमक्दम की,
आँख के 
अक्स में है दोनों 
जगना भी
सोना  भी...

जिया करती है 
चिंगारी याद की
औढ  कर राख 
भूल जाने की,
पहचान है 
ज़िन्दगी की
साँसे लेना भी
छोड़ना भी... 

जब मुंदती है 
आँखें बाहर के लिए  
दिखने लगता  है 
सब कुछ 
गहराई में,
शुमार है 
मन के वुजूद में 
होना भी 
ना होना भी...

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