मुझे बुलाता है कौन...
+++++++++++
दौड़ी चली आयी हूँ मैं
सुन कर सदा तेरी सदा
ना जाने किस घड़ी से तू
सोचता मुझ को जुदा....
सुनती रही हूँ रात दिन
धड़कन तेरे कल्ब की
होकर क़रीब भी दूर तू
मेरी क़िस्मत में बदा....
अँधेरा मेरी नज़र का
क्या तुम बिन दूर हो सके
लड़खड़ा कर गिर गयी
होकर कैसी ग़मज़दा...
उदासियाँ घेरे मुझे
सिंगार फीके पड़ गए
तुम बिन सूना है जहाँ
मोहताज मेरी हर अदा...
मुझे बुलाता है कौन
पूछती हूँ ख़ुद से मैं
जवाब देने आजा तू
मुंतज़िर है मेरा मैकदा...
सदा=हमेशा, सदा=आवाज़, कल्ब=हृदय, मैकदा=मधुशाला, मुन्तज़िर=प्रतीक्षा/इंतज़ार में,
ग़मज़दा=दुखी
No comments:
Post a Comment