Saturday, 24 November 2018

रिश्ता ए दर्द....


रिश्ता ए दर्द
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मिल गया सरे राह वो,और दिलबर हो गया
हर क़दम वो शोख़ ऐसे, मेरा रहबर हो गया.

रंगीनियों से जगमग रोशन थी महफ़िल तेरी
हो कर सादा तबियत तू मेरा हमनज़र हो गया .

राएगाँ था क़तरा ए आबगूँ पसीना दरअस्ल
खूं ए दिल से मिला बहा और अहमर हो गया.

खिज़ा ने तो किया था बेनूर मेरे चमन को
बहारों का मौसम भी ज्यों सितमगर हो गया.

मैंने जिये बेइंतेहा दर्द जिसके मोहब्बत में
रिश्ता-ए-दर्द से क्यों ही वो बेखबर हो गया.

(रहबर=मार्गदर्शक, राएगाँ=बर्बाद, आबगूँ=पानी के रंग वाला, अहमर=लाल/red)

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