Saturday 24 November 2018

इश्क़ कमीना : विजया



इश्क़ कमीना
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इश्क़ की ख़याली दुनिया में
इलावा इनके
'मैं तुम्हें प्यार करता हूँ'
'प्यार हो गया मुझे तुम से'
सब से ज़्यादा चलते है जो जुमले
उनमें महबूब या महबूबा
देखते हैं
ना जाने क्या क्या
एक दूजे की आँखों में...

देखा है पहली बार
साजन की आँखों में प्यार,
ये आँखें देख कर
हम सारी दुनिया भूल जाते हैं,
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में
रखा क्या है,
जीवन से भरी तेरी आँखें
मज़बूर करे जीने के लिए,
इजहारे इश्क़ में
निकलते हैं कुछ ऐसे ही अल्फ़ाज़
मोहब्बत करने वालों की जुबाँ से
होता है परवान पर
जब इश्क़ कमीना.....

उतरता है जादू
जब एक इश्क़ का तो
भूला दी जाती है वो ही आँखें
करते हुए याद हक़ीकी दुनियाँ को,
तलाश ली जाती है दूसरी आँखें
देखने किसी नये प्यार को,
ज़रूरियात जिस्म ओ जर की भी
निकाल ला आती है
उन्हीं आँखों से बाहर
कभी महबूब को
कभी महबूबा को
भूला कर सारे आहद,
हो जाती है शुरू
जुस्तजु ज़िंदगी की
कभी जागी हुई रूह के साथ
तो कभी ख़ुदगर्ज़ी का सबब बन कर
दूर हो कर तख़य्युलात से
पाने को निजात
जीने की उस 'मज़बूरी' से.....

इश्क़ जब बाहर आता है जुमलों से
समा जाता है वो जीस्त को जीने में
हो पाता है तभी आग़ाज़
एहसासात को महसूस करने का,
बोलने लगती है तभी ख़ामुशी
देख पाती है आँखें
वो सब कुछ
जो नहीं देख पायी थी वो
हो कर गाफ़िल
बनावटी मोहब्बत में....

हक़ीकी=वास्तविक, अहद-वादा, जीस्त=जीवन, तख़य्युलात=कल्पनायें

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