शब्द सृजन
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(पहचान-14 नव '18)
शक्ति पीठ....
++++++
हमारा भारत देश महान
करे हम इसकी कुछ पहचान
भ्रम विभ्रम मिटे और गूंजे
भारत देश महान......
हमारा भारत देश महान....
प्रजापति दक्ष प्रासाद में
उपनी देवी तनुजा हो कर
शिव से हुआ विवाह अलौकिक
मां रही रुद्र ऊर्जा हो कर....
कनखल में दक्ष नृप आयोजित
वृहस्पति यज्ञ अनूठा था
ब्रह्मा विष्णु इंद्र सुर आमंत्रित
जमाता उपेक्षित रूठा था...
नारद कौतुकी मुनि चपल ने
सती को यूं भड़काया था
नहीं निमंत्रित त्व पति देवी
संवाद यही सरकाया था.....
उसी सांस में बोले नारद
पितृगृह जाओ तुम, हे देवी !
नैहर में संकोच काहे का
अपना ही घर तो होता देवी !
शिव ने मना किया देवी को
प्रजापति पुर को जाने को
हठी भार्या कांत अति भोले
रहे विफल उसे मनाने को....
यज्ञ स्थल पर सती ने
पूछा तात से प्रश्न विशेष
किंतु दम्भी दक्ष अभिमानी
बोला अनेक अपशब्द अशेष....
आहत आवेशित सती ने स्वयं को
यज्ञाग्नि अर्पित कर डाला था
सुन संवाद शिव शम्भु ने
वध दक्ष आदेशित कर डाला था....
काटा मस्तक वीरभद्र ने
भूपति दक्ष प्रजापति का
पहुँचे शिव गणों सहित
करने प्रतिकार अति अति का...
शिव कोप से भयातुर हो
पलायन ऋषि सुरों का घटित हुआ
सती का शव कंधे पर उठा
शिव तांडव तीव्र प्रस्फुटित हुआ....
त्रिलोकी थी कम्पित
रुद्र रौद्र रूप तांडव के स्वर
व्याकुल देवों के अनुनय पर
आये विष्णु बचाने चक्र को धर...
अंग प्रत्यंग खंडित देवी के
चक्र सुदर्शन सक्रिय हुआ
गिरे जहं अंग वस्त्र आभूषण
शक्ति पीठ वहीं उदय हुआ....
उत्तर दक्षिण पूर्व पश्चिम
सब दिशि शक्ति का वास हुआ
चिर काल अवस्थित तथ्य सत्य
वृहतर भारत का आभास हुआ....
एक हिंगलाज पाक में पूजी जाती
किरीट काली इकतालीस भारत में
चार बांग्ला और तीन नेपाल में
एक एक लंका तिब्बत में....
शिव बन भैरव साथ रहे
इक्यावन पीठ अति सुंदर
वत्सल मां कहती समझो रे
झांको तनिक स्वयं अंदर....
खींचा नक्शा यह गोरों ने
भारत मां की यह शान नहीं
संस्कृति हमारी अक्षुण्ण है
अपनी सच्ची पहचान वही....
(वृहत्तर भारत की सांस्कृतिक एकात्मकता का अनुभव करना है तो शक्तिपीठों, ज्योतिर्लिंगों, शंकरपीठों, पर्वतों,नदियों और पुरियों के दर्शन को आत्मसात करके देखना होगा...यह रचना उसी प्रोसेस का एक इंगित मात्र है.)
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(पहचान-14 नव '18)
शक्ति पीठ....
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हमारा भारत देश महान
करे हम इसकी कुछ पहचान
भ्रम विभ्रम मिटे और गूंजे
भारत देश महान......
हमारा भारत देश महान....
प्रजापति दक्ष प्रासाद में
उपनी देवी तनुजा हो कर
शिव से हुआ विवाह अलौकिक
मां रही रुद्र ऊर्जा हो कर....
कनखल में दक्ष नृप आयोजित
वृहस्पति यज्ञ अनूठा था
ब्रह्मा विष्णु इंद्र सुर आमंत्रित
जमाता उपेक्षित रूठा था...
नारद कौतुकी मुनि चपल ने
सती को यूं भड़काया था
नहीं निमंत्रित त्व पति देवी
संवाद यही सरकाया था.....
उसी सांस में बोले नारद
पितृगृह जाओ तुम, हे देवी !
नैहर में संकोच काहे का
अपना ही घर तो होता देवी !
शिव ने मना किया देवी को
प्रजापति पुर को जाने को
हठी भार्या कांत अति भोले
रहे विफल उसे मनाने को....
यज्ञ स्थल पर सती ने
पूछा तात से प्रश्न विशेष
किंतु दम्भी दक्ष अभिमानी
बोला अनेक अपशब्द अशेष....
आहत आवेशित सती ने स्वयं को
यज्ञाग्नि अर्पित कर डाला था
सुन संवाद शिव शम्भु ने
वध दक्ष आदेशित कर डाला था....
काटा मस्तक वीरभद्र ने
भूपति दक्ष प्रजापति का
पहुँचे शिव गणों सहित
करने प्रतिकार अति अति का...
शिव कोप से भयातुर हो
पलायन ऋषि सुरों का घटित हुआ
सती का शव कंधे पर उठा
शिव तांडव तीव्र प्रस्फुटित हुआ....
त्रिलोकी थी कम्पित
रुद्र रौद्र रूप तांडव के स्वर
व्याकुल देवों के अनुनय पर
आये विष्णु बचाने चक्र को धर...
अंग प्रत्यंग खंडित देवी के
चक्र सुदर्शन सक्रिय हुआ
गिरे जहं अंग वस्त्र आभूषण
शक्ति पीठ वहीं उदय हुआ....
उत्तर दक्षिण पूर्व पश्चिम
सब दिशि शक्ति का वास हुआ
चिर काल अवस्थित तथ्य सत्य
वृहतर भारत का आभास हुआ....
एक हिंगलाज पाक में पूजी जाती
किरीट काली इकतालीस भारत में
चार बांग्ला और तीन नेपाल में
एक एक लंका तिब्बत में....
शिव बन भैरव साथ रहे
इक्यावन पीठ अति सुंदर
वत्सल मां कहती समझो रे
झांको तनिक स्वयं अंदर....
खींचा नक्शा यह गोरों ने
भारत मां की यह शान नहीं
संस्कृति हमारी अक्षुण्ण है
अपनी सच्ची पहचान वही....
(वृहत्तर भारत की सांस्कृतिक एकात्मकता का अनुभव करना है तो शक्तिपीठों, ज्योतिर्लिंगों, शंकरपीठों, पर्वतों,नदियों और पुरियों के दर्शन को आत्मसात करके देखना होगा...यह रचना उसी प्रोसेस का एक इंगित मात्र है.)
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