ग़ुल्फ़िशाँ
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नूरे निगाह उसकी असर कुछ कर गयी
दिल के अंधियारों को रोशन कर गयी,,,,
कर दी मुनादी बादलों ने गरज कर
मुद्दतों के बाद वो किसी दर पर गयी,,,
हो गयी उजली मेरी मावस की रात
छोड़ कर सब कुछ , वो मेरे घर गयी,,,,
खिल उठी है चाँदनी हर ज़र्रे में
ज़मीं से आसमां को निहानी नज़र गयी,,,
खिल गये गुलशन में गुंचे बेशुमार
ओस बन बूटों पे जब वो झर गयी,,,,
तसव्वर में हर लम्हे मैं क्यूँ डूबा रहा
वो दो घड़ी भी दूर मुझ से गर गयी,,,
दिखने में मासूम ओ गुलरुख़्सार थी
हुई ग़ुल्फ़िशाँ छूकर जब अख़्गर गयी,,,
(निहानी=अंदरूनी, तसव्वर=ख़याल, गुलरुख़्सार=गुलाब के फूलों जैसे कपोलों वाली नायिका, ग़ुल्फ़िशाँ=फुलझड़ी, अख़्गर=चिंगारी)
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