Sunday, 24 March 2019

प्रेम नदी : विजया


प्रेम नदी....
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मैं थी और हूँ,
प्रेम-नदी
तुम्हारी नस नस में,
सुनामी
तुम्हारी वांछाओं की,
मधुर स्मित
तुम्हारे मुख मंडल की....

बनी हूँ मैं,
शाश्वत अंकन
तुम्हारे संसार का,
आनंद गीत
तुम्हारे अधरों का,
इंद्रधनुष
तुम्हारे जीवन का....

हो जाऊँ मैं,
प्रेरक विचार
तुम्हारे मस्तिष्क में,
लिपि
तुम्हारे आत्म पटल की,
लौ
तुम्हारे शांति दीप की....

( पुरानी रचना )

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