Monday, 25 March 2019

ज़िंदगी की हक़ीक़तें : कहानी (२) : विजया

गद्य रचना
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ज़िंदगी की हक़ीक़तें (धारावाहिक कहानी)
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(अंक-दूसरा )

निशु और पापा दोपहर में क्लब के पूल साइड टेबल पर संजीदगी से डिस्कस कर रहे थे.
"निशु कैसी चल रही है पढ़ाई ?" शुरुआत की थी पापा ने.
"अच्छी" ऐसा जवाब था जो बात को आगे बढ़ा सकता था.
"क्या सोचा है आगे के लिए ?"
"सी ए के लिए आर्टिकलशिप पूरी होने को है मार्च में,मई में फ़ाइनल के दोनों ग्रुप दे दूँगी, CAT के लिए तैयारी चल ही रही है , अच्छा करूँगी उम्मीद है और किसी ना किसी IIM में कॉल आना ही है.उसके बाद जॉब."
बहुत ही क्लैरिटी से अपना 'केरियर पाथ' जैसे 'चाक आउट' कर रखा था निशु ने. बिलकुल स्पष्ट और सधा हुआ नक़्शा, मंज़िल तक पहुँच पाने का आत्मविश्वास क्योंकि वह शुरू से ही एक ज़हीन और मेहनती स्टूडेंट रही थी, अव्वल आने वाली.
"वो तो ठीक है, लेकिन शादी, तुम इक्कीस की हो गयी हो और मैं चाहता हूँ कि एक एक करके समय के साथ अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरा कर दूँ. अभी जून है, योग्य घर वर देखना शुरू करेंगे अब से तो कुछ अच्छा चुनाव कर सकेंगे. तुम्हारे CA फ़ाइनल के ऐग़्ज़ाम के बाद धूम धाम से शादी कर देंगे. क्यों कैसा रहेगा ?"
बिज़नस negotiations की तरह ही जीत की बाज़ी बिछाने लगा था उसका पापा.
"CA के बाद तो MBA करना है ना." बोली थी निशु. सीधे शादी के लिए इंकार करके वह पापा की बात नहीं काटना चाहती थी.

"देखो, यही तो ब्यूटी होती है अरेंज्ड मेरिज की....ऐसा रिश्ता देखेंगे जिसमें तुम अपने ही ससुराल के बिज़नेस में काम कर सकोगी और वर्कएक्स (काम का अनुभव) लेकर ISB (Indian School of Business) से MBA भी कर सकोगी....सब कुछ साफ़ साफ़ बात हो जाएगी." पापा ने नज़दीकी सर्कल में ऐसे कई एक  प्रेक्टिकल उदाहरण भी दिए थे जिनमें लड़कियों ने शादी के बाद अपने इच्छित केरियर गोल्स को हासिल किया था और सुखमय दाम्पत्य व परिवारिंक जीवन का आनंद ले रही थी. आर्थिक संपन्नंता और सोचों में प्रगतिशीलता नए और पुराने प्रतिमानों में सेतु का काम करती है, पापा इस बात को ना केवल कहते थे वैसे ही जिया भी करते थे.

बिज़्नेस नेग़ोसिएशन्स में सामने वाले के हथियार एक एक करके गिरवा देने में माहिर थे ना पापा. "उसी के हथियार से उसकी को मार गिराता हूँ," जब मूड में होते तो कुछ ऐसा ही बोला करते थे निशु के पापा. निशु क्या उत्तर देती सब कुछ उसके खिंचे नक़्शे के साथ ही तो दिखा रहे थे पापा.

"अंकल कह रहे थे कि स्टार्ट अप के लिए अगर अच्छी आयडीआ हो तो विदेश के वेंचर केपीटल फ़ंड्ज़ से अच्छा ख़ास इन्वेस्टमेंट भी मिल सकता है. ऐसा लड़का तुम्हारे लिए ढूँढूँगा जो स्मार्ट हो, शिक्षा में भी क्वालिफ़ायड हो, ब्रिल्यंट अचिवर हो और अच्छे सोचों वाला हो. एक ज़िम्मेदार खुले विचारों वाला प्यार करने वाला जीवन साथी खोजेंगे तुम्हारे लिए बिल्कुल वैसा ही जैसा तुम सोचती होगी, एक दम क़म्पेटिबल." किसी के दिमाग़ में विचार और मुँह में शब्द डाल देने की कला भी पापा ने ख़ूब सीख रखी थी.

पापा उसे सरमन देने वाले पादरी जैसे लग रहे थे और उसे उनके हर वक्तव्य के बाद मानो बस 'आमीन' बोलना था. यहाँ आमीन की जगह बोलकर या गेसचर से 'हाँ पापा' ही बोल पा रही थी निशु.

"क्या लोगी तुम"......निशु कुछ बोले उससे पहले ही वे उसके फ़ेवरिट 'मोज़ितो' मोक्टेल और ग्रिल्ड क्लब सैंड्विच का ऑर्डर स्टूअर्ड को देने लगे थे आज ख़ुद के लिए भी 'स्वीट लाइम सोडा' की जगह 'मोज़ितो' ही मँगा रहे थे. निशु असमंजस में थी, यह पापा का प्यार जताना है या आर्ट ओफ़ नेगोशिएशन का कोई और पैंतरा😊

ऑर्डर की चीज़ें आने तक पापा उस से उसने जो लास्ट मूवी देखी उस पर बात शुरू कर के अगले वेकेशन प्लान पर आ गए थे जो सैंड्विचेज़ कुतरते और मोज़ितो सिप करते हुए भी जारी रहा.

"बहुत अच्छा लगा आज तुम्हारे साथ समय बिताकर, व्यस्त वर्किंग डे में भी".....मैंने एक बिज़्नेस मीटिंग रखी है यही क्लब में. तुम गाड़ी रख लो कह रही थी ना आज Oxford और Cross Word बुक शाप जाना है तुम्हें. और हाँ मेरे लिए Mont Blanc  ने जो नया पेन सेट लॉंच किया है वो पिक अप कर लाना प्लीज़. मैं इस 'क्रोस' (pen) से अब  बोर होने लगा हूँ.....कोमन सा हो गया है और घिसा पिटा भी लगने लगा है.

घड़ी पर नज़र डाली जब कि फ़ोन की स्क्रीन पर टाइम देख चुके था पापा जी, और बोले, "आई फ़ोर सी सच लव्ली टाइम विद यू अगेन....मिलेंगे इसी weekend और ढेर सी बातें करेंगे दिल मैन की बाप बेटी. मेरे लिए मेरे बच्चे फ़्रेंड्स है, है ना.......बिना निशु के जवाब का इंतज़ार किए पापा बिज़्नेस लाउंज की तरफ़ बढ़ गए थे.

निशु समझी हो या नहीं, मास्टर ओफ़ दी गेम ने अगला अजेंडा सेट कर दिया था.

अचानक सेलफ़ोन पर रिंग हुई, मैं फ़्लैश बैक से वर्तमान में लौटी.
साहेब का फ़ोन था, मास्टर ओफ़ गेम के मास्टर का. अनगिनत कहानियाँ साहेब और मेरे जीवन में सृजित हुई है जिसमें साहेबजी के लोगों द्वारा उपयोग/सदुपयोग/दुरुपयोग के आम और ख़ास वाक़ये देखने को मिले हैं. कह रहे थे, "चाय रेडी रखना, इधर से गुज़र रहा था, तुम्हारे मनपसंद समोसे ला रहा हूँ. बस पाँच मिनट में तुम्हारे इजलास में हाज़िर !"

चाय का पानी उबलने लगा था.

(गाइडेन्स और एडिटिंग में सहयोग के लिए साहेब याने Vinod Singhi का धन्यवाद !)

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