Sunday, 24 March 2019

अपनी पहचान खोज लो : विजया




अपनी पहचान खोज लो....
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अनजानी राहें तो क्या
बैखोफ हो तुम बढ़ चलो
रास्ते के शजरों में
अपनी पहचान खोज लो...

धूप जो निकली तेरे लिए
चन्द घड़ियों की मेहमान है
तरीकियों से लड़ सको
ऐसा सामान खोज लो....

घनघोर घटाएँ छायी है
बादलों का गर्जन है
बिजलियों की चमक में
अपने अरमान खोज लो .....

बाज़ उड़ना छोड़ कर
क़तरा रहा है उड़ने से
उसके घायल पंखों में
ऊँची उड़ान खोज लो...

साथ देता वक़्त उन्हें
जो साथ अपना दे सके
चाँद तारों की इबारत में
'उसका' फ़रमान खोज लो....

ग़ैरों के घर टिकना क्या
संग अपनों का जब ना रहा
भटक रहे क्यों हो यहाँ वहाँ
ख़ुद का मकान खोज लो...

क़समें वादे तोड़ कर
ये बिछड़ जाने के सबब
सफ़र अकेले जब करना
अपना ईमान खोज लो ....

ग़मग़ीन होकर रुक गए
ज़रा अश्क़ अपने पौंछ लो
शूलों भरी है ज़िंदगी
उस में मुस्कान खोज लो...

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