Monday, 25 March 2019

निशा और पंकज (२) : विजया

गद्य रचनाएँ
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निशा और पंकज......(2)
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(मेरी ख़ुशक़िस्मती है कि बचपन से ही मैं एक ऐसे इंसान से जुड़ गयी जो बहुत बार मुझे भी इस दुनिया का नहीं लगता.
कभी कभी उसके किसी भी मिशन में ज़रूरत से ज़्यादा involvement को देख कर कोफ़्त और ग़ुस्सा भी आता है लेकिन दिल का प्यार और दीमाग की आपसी समझ उसकी सहजता के साथ मिल कर सब कुछ को पल में ही फुर्र कर देते हैं.

उसके मिशन्स की कुछ कहानियाँ शेयर करूँगी, हाँ जैसा मैंने अपनी नज़र से देखा. सच्ची घटनाएँ हैं ये बस नाम बदल दिए हैं पात्रों और स्थानों के और घटना क्रम को भी रूपांतरित कर दूँगी ताकि privacy बनी रहे.)

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कोई सात साल पहले की एक बात याद आ गयी. निशा को लगातार कमर में भयंकर दर्द रहता था और वह उसका सम्बंध पंकज की अति कामेच्छा से हुई हरकतों से जोड़ती थी......बहुत कुछ सुनाती रहती थी. पंकज भी short tempered....उसे जवाब में उलटा सीधा सुनाता रहता था. आरोप प्रत्यारोप का बाज़ार बड़ा ग़र्म रहता था. साहेब को चिंतित पंकज से मालूम हुआ तो अपने रसूख़ से शहर के नामी गिरामी और व्यस्त ओर्थोपेडिक सर्जन डा. भट्ट का emergecy appointment निशा के लिए करा दिया. पंकज ने ख़बर दी कि MRI से कन्फ़र्म हो गया है कि निशा को acute slip disc है और उसका एक मात्र उपाय सर्जरी है रीढ़ की हड्डी की. बड़ा आपरेशन, निशा का अपने मैके के लोगों पर अधिक विश्वास. तय हुआ कि सर्जरी कलकत्ता में नहीं करा कर मुंबई में करायी जाएगी जहाँ निशा के पेरेंट्स और भाई-भाभी रहते हैं. अम्बानी की कोकिलाबेन अस्पताल में निशा की सर्जरी की व्यवस्था कर दी गयी. मैके वाले बस विज़िटिंग समय में देखने आते. पंकज ने दिन रात एक कर दिया और ख़र्चा भी क़रीब सत्तर हज़ार किया. झगड़ालू मियाँ बीवी की बॉंडिंग का मौन प्रतीक था यह .

ख़ैर निशा की सर्जरी सफल हुई. उसके पेरेंट्स रिलीज़ के पहले दिन अस्पताल आए थे कोई एक घंटा उसके साथ रहे. निशा के सुर बदल गए थे. शिकायतों का बड़ा सा पुलिंदा तैयार हो गया था.....फ़ेहरिस्त में पंकज का समय पर उसे ऊपर वार्ड में नहीं देखना, हॉस्पिटल के पेमेंट में देरी, खाने पीने के लिए बाहर किसी डाँस बार-रेस्तराँ में जाना, नर्स की तरफ़ ललचायी नज़र से देखना आदि थे. पंकज के ससुर ने भी दामाद जी को आड़े हाथों लिया था.  पंकज को त्रिकालदर्शी साहेब ने अग्रिम कह दिया था कि चुप चाप सुन लेना जब भी पूज्य पापाजी झाड़े....,लेकिन उन्हें निशा को कुछ दिन अपने पास रख कर आराम करवा देने की गुज़ारिश ज़रूर कर देना. पेरेंट्स ने हामी भर ली थी और निशा को रिलीज़ करा कर कांदीवली मैके ले जाया गया....रेजिस्टर्ड लेटर के साथ नत्थी किए AD कॉर्ड की तरह पंकज भी ससुराल चला गया .  निशा की अपनी भाभी अरुणा से कभी भी पटरी नहीं खाती थी...,माहौल ऐसा बना कि दो दिन बाद ही इन लोगों को कलकत्ता लौट आना पड़ा. निशा को फिर यह शिकायत कि माहौल बिगड़ता नहीं अगर पंकज अस्पताल से तुरंत कलकत्ता लौट जाता और वह मायक़े में दो सप्ताह आराम कर लेती. भूल गयी निशा कि उसी ने पंकज से कहा था कि ऐसी क्या हड़बड लगा रखी है, कलकत्ता में कोई गर्ल फ़्रेंड है क्या......बेचारे पंकज को मन मसोस कर ससुरबाड़ी जाना पड़ा था. कलकत्ता आकर भी एक महीना पंकज ने निशा का अच्छे से care किया. उसके पास रहता, समय पर दवा देना, उसे वाश रूम ले जाना, कपड़े बदलवाना सब कुछ बड़े मन से करता पंकज. हम लोग एक दिन देखने गए तो निशा की शिकायतों की फ़ेहरिस्त बड़ी लम्बी हो गयी थी, पुराने आइटम्ज़ के साथ बहुत कुछ नया भी जुड़  गया था. सब से गम्भीर था पंकज का उसे समय समय पर शारीरिक सम्बन्ध बनाने के लिए छूना.....मेड को ग़लत नज़रों से देखना......उसकी पसंद के फल नहीं लाना, अमूल की जगह मदर डेयरी का दूध लाना इत्यादि.

मैंने कहा साहेब से की पंकज को बुला कर इसके आमने  सामने करो देखो कितना ग़लत कर रहा है. बोले निशा ग़लत थोड़े ही कह रही है. ख़बर लूँगा आज ऑफ़िस में बुला कर मर्दूद की. मैं जानती हूँ कि पंकज के साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ होगा. हाँ, पंकज उस दिन घर आया तो कह रहे थे उसको, यार तेरी बीवी तो सचमुच बदलने लगी है....डाक्टर ने क्या दिल की सर्जरी भी की थी.....लगता है उसका हृदय परिवर्तन हो गया, मालूम हुआ उस से कि तुम ने मुंबई अस्पताल और यहाँ उसके care में दिन रात एक कर दिए हैं, बड़ा ख़याल रखता है.....यार तेरी तो चल निकलेगी अब और सड़क छाप ठरकी की तरह आँख मारते उसकी तरफ़ देख कर. सच कहूँ जब भी साहेब ठेठ गालियाँ देते हैं और ऐसी ऊटपटाँग हरकतें करते हैं तो सोचती हूँ इस इंसान का कितना ख़राब इम्प्रेशन पड़ता होगा शालीन लोगों पर.

हे भगवान ! कितना झूठा है यह बंदा जो सच की बड़ी बड़ी बातें करता है. सच में नहीं समझ पाती इसका किरदार. कहता है यह झूठ नहीं है positive vibes तैयार करना है, यह टेक्निकल काम है 😊 देखना एक दिन निशा ऐसा सोचेगी और कहेगी भी....और यह खड़ूस पंकज भी माइल्ड हो जाएगा.

ऐसे में कड़क आसाम चाय  ही इस नौटंकीबाज़ के ज्ञान से निजात दिलाया करती है. झूठों का यह दुश्मन अपने हर झूठ को justify कर सकता है, कभी टेक्निकल कह कर तो कभी प्रेक्टिकल नाम दे कर तो कभी कहेगा यार 'was playing a prank....इतना तो चलता है....इंसान हूँ, भगवान नहीं.

पूछ ही लिया मैंने चाय की चुश्की लेते हुए, "कब कहा था निशा ने वह सब कुछ जो तुम पंकज को कह रहे थे." बोला मैं ने कब कहा कि निशा यह बोली. अरे मैंने उसे पूछा था ना कि वाश रूम कौन ले जाता है, कपड़े कौन बदलता है, दवा कौन देता है, चलाता कौन है....क्या बोली थी वह यही ना कि आपका परम प्रिय चेला. और मैंने पूछा था ना कि बाहर बहुत जाता होगा तो कहा था उसने कि यहीं पड़ा tv देखता है, फ़ोन करता रहता है और काम के काग़ज़ पढ़ता रहता है, मेरी तरफ़ तो झाँकता तक नहीं......और सिद्धू की तरह ठहाके लगा रहा था साहेब....मैंने भी हँसते हँसते सिर पीट लिया था....सच में साहेब ने कहा था 'मालूम हुआ है ' यह नहीं कहा था 'निशा ने कहा'. जब मैंने तारीफ़ वाले लुक्स दिए तो इतराया साहेब, "मैडम यह presentation होता है, आख़िर management consultant जो हैं हम."😊

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