अनीश्वर....
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दिखा झलक स्त्रित्व की
स्वस्तित्व में
माना अर्धनारीश्वर हो गये...
है प्रतिफल समर्पण का
या कोई चमत्कार
स्वामी से अनुचर हो गये...
अमिट प्रेम हो
बसकर मेरे मन मंदिर में
स्वयंभू अनश्वर हो गये...
मत सोचो
धारण कर
नाम 'अनीश्वर' को
तुम कोई ईश्वर हो गये....
('अनीश्वर' शिव के नामों में से एक है जिसका अर्थ है जिसका कोई मालिक नहीं हो, कविता में इस शब्द को इसी अर्थ में प्रयोग किया गया है. आमतौर पर अनीश्वर का सम्बंध नास्तिकों के अनीश्वरवाद से जोड़ा जाता है.....मज़े की बात है ना कि हम आस्तिकों के ईश्वर ने अपना नाम अनीश्वर धर रखा है....बाक़ी कविता के भाव कह रहे हैं 😊😊😀)
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