Monday 25 March 2019

निशा और पंकज : विजया (१)

गद्य रचनाएँ
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निशा और पंकज......(1)
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(मेरी ख़ुशक़िस्मती है कि बचपन से ही मैं एक ऐसे इंसान से जुड़ गयी जो बहुत बार मुझे भी इस दुनिया का नहीं लगता.
कभी कभी उसके किसी भी मिशन में ज़रूरत से ज़्यादा involvement को देख कर कोफ़्त और ग़ुस्सा भी आता है लेकिन दिल का प्यार और दीमाग की आपसी समझ उसकी सहजता के साथ मिल कर सब कुछ को पल में ही फुर्र कर देते हैं.

उसके मिशन्स की कुछ कहानियाँ शेयर करूँगी, हाँ जैसा मैंने अपनी नज़र से देखा. सच्ची घटनाएँ हैं ये बस नाम बदल दिए हैं पात्रों और स्थानों के और घटना क्रम को भी रूपांतरित कर दूँगी ताकि privacy बनी रहे.)

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रोज़ लड़ते रहते थे वो. कारण ढूँढने के लिए मशक़्क़त नहीं करनी होती ना मियाँ को और ना ही बीवी को....एक दूसरे की गतिविधियों में कारण मिल ही जाते हैं, अगर लड़ना हो तो गढ़ भी तो लिए जाते हैं.

उसे मैके के नए नए धनी होने का घमंड था, उसकी आदतें खर्चीली....लहजा शिकायती, उसको हरदम यही अफ़सोस कि कैसा शौहर मिला. बोली ऐसी मानो शब्दों को ऐसिड में डूबो कर परोस रही हो. व्यंग वाण चलाने में ओलम्पिक लेवल.

उसके जवाब में पंकज ना जाने किन किन ख़यालात की चर्चा करता रहता जिनमें हर अच्छी चीज़ में नुख़्स निकालकर ख़ुद को सयाना साबित किया जाता, बेमतलब की मितव्ययिता जो भविष्य की काल्पनिक चिंता पर आधारित होती, यह करो वह मत करो वाली ख़ाली मर्दानी ठसक.

दोनों में बात बात पर ठन जाती.....बीवी दिन कहे तो मियाँ रात, मियाँ पूरब चले तो बीवी पश्चिम. झगड़ते हुये साथ रहना मानो दोनो की फ़ितरत हो.

शौहर को हर रात बीवी द्वारा बिस्तर में फ़र्ज़ अदायी की तलब और बीवी को मियाँ की छुअन तक बर्दाश्त नहीं.
बीवी कहती है यह ज़ालिम रोज़ ज़बरदस्ती करता है और मियाँ कहे क्या बाहर जाकर ख़ुद को जिस्मानी चैन दूँ ? गायनो डाक्टर मृदुला कहे कि निशा को low libido (न्यून कामेच्छा) याने हाइपो सेक्शूऐलिटी के लक्षण है तो पंकज के लिए डाक्टर रहमान में निदान किया high libido (अति कामेच्छा) याने हाइपर सेक्शूऐलिटी का केस है. दोनो ही दूसरे को दोषी समझे और ख़ुद को नोर्मल और इलाज की ज़रूरत दूसरे को है ख़ुद को नहीं इस बात पर अटल. हाँ इस बीच दो लड़कियाँ ज़रूर पैदा कर ली दोनो में...सन्तानोत्पत्ति में मियाँ बीवी के झगड़ा फ़साद, disharmony और दुश्मनी ना जाने क्यों बीच में नहीं आते.

पंकज इनकी सुनता और उसने इलाज भी कराया, व्यवहार में भी तब्दीली लाया लेकिन निशा का हाल वैसा ही.  उसे  नाना प्रकार की शिकायत पंकज से.....कुछ वाजिब भी ...मगर ज़्यादातर प्वाइंट प्रूव करने के लिए.

सुबह होते ही फ़ोन आता इनके पास, निशा बोल रही हूँ घर में राशन नहीं, इसने बड़ी लड़की की स्कूल फ़ीस नहीं दी, बिजली का बिल नहीं चुका सकी क्योंकि पैसा ही हाथ में नहीं. फ़िर बेवजह रोना धोना और इन पर एहसान का टोकरा....बस भाई साहब आपके लिहाज़ से टिकी हुई हूँ नहीं तो कब की....

पंकज से पूछते तो कहता हर हफ़्ते अमुक रक़म दे देता हूँ अगली जाने. देखा जाता कि वह रक़म पर्याप्त नहीं,
पंकज का कवर अप कि काम मंदा चल रहा है ....आमदनी गिर गयी कहाँ से दूँ. उसने पीछे महीने अलग से २० हज़ार झटके थे, उसका हिसाब आज तक नहीं दिया. सब सुन सुना कर हमारे साहेब जी बोलते यार कुछ भी कह, बीवी किसकी....पंकज कहता मेरी और बच्चे...,बोलता obviously मेरे....तो एक काम कर आज पाँच हज़ार निशा के हाथ में दे देना, बड़ी कड़ी ज़बान है रे उस गिरडीह वाली की,  तेरा ही माद्दा है  कि निबाह रहा है. फिर एक बात तो माननी होगी तुम भी कम नहीं हो....वो बेचारी झेल रही है तुम जैसे को. पंकज खीसें निपौर देता. फिर मंद मंद मुस्कुरा कर साहेब कहते अरे पंकज,  पैसा हाथ में नहीं है तो ले जा.....मुझे आवाज़ देते तो पंकज बोलता भाभी रहने दीजिए आज पेमेंट आएगा मैं दे दूँगा सात हज़ार....तब तक हिसाब मिला चुका होता  था पंकज. पंकज को बिना चीनी की चाय क्रीम क्रैकर बिस्किट के साथ सर्व होती, साहेब का आदेशात्मक अनुरोध पंकज को धो कर एक रसगुल्ला खिला दो, शुगर है बेचारे को. पंकज इनका भक्त और ये .....

कहने का मतलब दोनों के बीच जोड़ने वाला सूत्र यदि कुछ था तो एक दूसरे से असंतुष्टि और शिकवा शिकायत.

माँ बाप की इस लड़ाई का लाभ दोनो बच्चियाँ ख़ूब उठाती....कभी मम्मी से फ़रमाइश पूरी कराती...तो कभी बाप से कुछ ऐंठ लेती. छोटी सी उम्र में बेटियाँ भी भारतीय राजनीतिज्ञों की तरह चालाक हो गयी थी.

 चारों के शिकायती फ़ोन इनके पास आते....किस स्टैमिना के बने हैं ये.....सब की सुनते हैं....विश्लेषण करते हैं और कुछ ना कुछ solution निकाल देते हैं. मगर सोच इनका यही चलता रहता है कि कुछ ऐसा हो कि समस्या का long term solution हो.

मुझ से डिस्कस करते और ना जाने क्यों किसी को भी ग़लत नहीं बताते और सब को भी. यही कहते उनकी जगह हो कर सोचो यही तो व्यवहार होगा....क्यों हो रही हो जज़्मेंटल.

बोलते पंकज diabetic है, बहुत मेहनत करता है, sincere और आनेस्ट है बेचारे की क़िस्मत ख़राब है निशा जैसी बीवी मिली.

निशा की बात हो तो, अरे तुम औरत हो कर औरत का दर्द नहीं समझती यह मूर्ख पंकज अव्वल दर्जे का कंजूस और खड़ूस....कितना अच्छा खाना बनाती है निशा. यह पंकज चटौरा है तभी तो छोड़ नहीं सकता बीवी को साला रेपिस्ट.

बड़ी बेटी को कहते, तेरा बाप बहुत गुणी है...देखो कितना अच्छा वैल्यू सिस्टम है मगर खड़ूस मर्द है..तुझे अगर ऐसे मर्द के पल्ले नहीं बंधना है तो ख़ूब पढ़....independent बन. और हाँ तेरी मम्मी का ख़याल रखा कर.

छोटी बेटी को कहे बाप का ख़याल रखा कर, थक हार कर आता है बेचारा.... तेरी मम्मी तो मुँह फुलाए कमर दर्द का बहाना बनाए बैठी रहती है....तू घर आते ही उसे पानी सर्व किया कर....चाय पिलाया कर.

इनकी इस जोड़ तोड़ की राजनीति को मैं कभी भी आत्मसात नहीं कर पाती मगर देखती रहती कि चीज़ें बेहतर होती जा रही है  हालाँकि पूरा सुधार नहीं.

पूछती कि यह क्या तमाशा है बोलते किताबों में लिखी अच्छी बातें ज़िंदगी के हर क़तरे में नहीं समाती ना....ये परिवार ये समाज हमारे आविष्कार हैं और इनके raw material भी हम ही हैं हम जैसे होंगे वैसा ही तो होंगे ये भी.

बोलती मैं जब नहीं बनती तो दोनों को अलग क्यों नहीं करा देते. बड़े सैद्धांतिक बनते हो.....नारी के शोषण में योगदान दे रहे हो. हंस कर कहते निशा सिर्फ़ दस तक पढ़ी है कहाँ जाएगी क्या करेगी ऊपर से तेज़ तर्रार मिज़ाज....पंकज के साथ फ़िट है.... सब ठीक हो जाएगा. मैं कहती कब तक......एक ही स्क्रिपटेड जवाब, जब माँ की मर्ज़ी  होगी. जैसे माँ ने ज़िम्मा उठा रखा है दुनियाँ के बेमेल जोड़ों और ऊबड़ खाबड़ परिवारों का.

मैं आज तक नहीं समझ पायी कि इनके radical सोचों का इन सब से इतने विरोधाभास क्यों है....पूछेंगे तो कहेंगे अरे नज़ला के रोगी को क्या antibiotic दी जाती है. ज़िंदगी में हमेशा दो और दो चार नहीं होते. आम आदमी आम आदमी की तरह जीना सीख ले उसके बाद सिद्धांतों की खेती....ज़मीन तैयार करनी होती है मैडम. ख़ुद मानो बरट्रेंड रसेल के अवतार हो गए हों....ज्ञान गुफ़्ता शुरू. चाय की रिश्वत इन्हें फिर से मुझ तक लाती है.😊

Contd......

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