Monday 18 March 2019

रंग तुम्हारे : विजया

थीम सृजन : रंग
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रंग तुम्हारे मेरे हमारे......
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सुनो !
होते हो तुम जब भी हरे
अपना लेती हूँ
धरती सा भूरा रंग तुम्हारे लिए
करते हुए प्यार फूलों को
बन जाती हूँ मैं तब तब
एक ठोस आधार तुम्हारे लिए.....

हो जाती हूँ मैं
रंग आसमानी तुम्हारे लिए
होते हो जब जब ताम्बई तुम
हों जाते हैं हम
सुंदरतम महासागर
जिसे किसी भी आँख ने
शायद ही देखा हो कभी....

जब जब होते हो तुम नीले
हो जाती हूँ मैं तुम्हारी रक्त वर्णा
रुलाने लगती है
जब भी कोई चोट तुम को
हो जाता है महसूस मुझे
वो दर्द तुम्हारा....

होती हूँ मैं 'नारंगी रंग' तुम्हारा
जब जब होते हो तुम गुलाबी
होते हैं हम ग़ज़ब का सूर्यास्त
लिखा करता है जिसे कभी कभी
यह आसमां हमारा....

होते हो तुम बैंगनी जब जब
होती हूँ मैं 'बेज' रंग तुम्हारा
रचते हैं हम मिलकर एक अपूर्व दृश्य
चाँदनी रात में सोया सहरा
हो जहाँ टीले बालू के
सरोबार रंगों में
तेजपते के हरे रंग की झलक लिए...

जब जब होते हो तुम धूसर(ग्रे)
हो जाती हूँ मैं इन्द्रधनुष तुम्हारी
हो जाते हैं हम
सब से सुखद तूफ़ानी बारिश
जो नहीं जानी हो दुनिया ने कभी.....

सुनो !
होंगे जब जब तुम श्यामवर्ण
हो जाऊँगी मैं श्वेत तुम्हारा
करते हुए विलय सब रंगों को
कर दूँगी सही सब कुछ......

लेकर प्रेम के समस्त रंग
मेरी थप्पी में
आँकते हुए जानदार सूर्योदय और शानदार सूर्यास्त को,
रंग दूँगी सुबहें तुम्हारी
चमका दूँगी दिनों को तुम्हारे
हो रहे होंगे जब भी तुम आहत
किसी के फरेब, छलाव और झूठों से,
उतार लाऊँगी शांत गहरी रातों में
सितारे गगन से
और भर दूँगी उनको
तुम्हारी उदास आँखों में......

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