Thursday, 6 December 2018

जानलेवा घाव : विजया



जानलेवा घाव
++++++++

कुछ यादें होती है
स्क्रीन शॉट
उस पल की घटनाओं का
जब वो घटित होती है
सब छोड़ चुके होते हैं जगह
मगर
हमारी ज़ख़्मी अना
पग जमाये
डट कर खड़ी होती है....

कहाँ थमा है वक़्त
किसी के इंतज़ार में
हालात ने
किया है लिहाज़ कहाँ
किसी के सरोकार में,
चिपकाए रखते हैं
सीने से
उन मर चुकी यादों को
ज्यों फिरती है बंदरिया
चिपकाए हुये छाती से
अपने मरे हुये बच्चे को....

नतीजा होता है
जानलेवा घाव
बदबूदार मवाद भरा,
काश छोड़ पायें हम
देखना माज़ी को
आतिशी शीशे से
लिए हुये बौझा
अधूरेपन का
एहसासे कमतरी का
बिगाड़ देता है जो
आज को भी
कल को भी....

No comments:

Post a Comment