हर मंज़र आना जाना है,,,,,
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बोलों में एक तराना है
ख़ामोशी में भी तराना है
सुन लो तुम यह गीत मेरा
एहसास का एक यगाना है,,,
गुज़ारिश बादेसबा से है
दामन को हवा दे देख देख
आतिश ख़ुद में ही जज़्ब किये
एक जला हुआ परवाना है,,,,
मस्जिद मंदिर और ख़ानख़ाह
सब एक है मुझ पर अब यारों
मैं हुआ हूँ तब से आवारा
छोड़ा जब से मैखाना है,,,,
पलकें चूमे रुख़सारों को
गेसू लहराये घटा हो ज्यों
ये हुस्न है मौजू नज़रों का
हर मंज़र आना जाना है,,,,,
अपनों से उम्मीदें क्यों हो
कब गुहर सदफ के काम आया
भरम महज़ मन का है ये
कोई अपना कोई बेगाना है,,,,
मुझपे जो कर्ज़ हुआ करते
कब के तो वो बेबाक़ हुये
दर पर दस्तक हर रोज़ है क्यों
बाकी अब क्या अफ़साना है,,,,,
(बादेसबा=पुरवाई, खानखाह=आश्रम, यगाना=स्वजन, बेबाक़=चुकता, सदफ=सीप, गुहर=मोती)
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