Wednesday, 5 December 2018

रूह से मिला दिया : विजया



रूह से मिला दिया...
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तेरी छुअन ने कुछ ऐसा
जादू जगा दिया
जिस्मो ज़ेहन को तुम ने
रूह से मिला दिया....

जानती थी तुझको
ज्यों अजनबी कोई
छूकर के मुझको तुमने
अपना बना लिया.....

ख़ामोशियाँ होती है
ज़ुबान जिल्दों की
सरग़ोशियाँ ऐसी हुई
नग़मा बना दिया...

महबूब हो मेरे
मगर संगतरास हो
पत्थर की परतें खोल कर
अरमाँ जगा दिया...

गरम आग़ोश तुम्हारे
पिघलाते रहे मुझे
पानी थी मैं मामूली
अमृत बना दिया...

मेरे हर ज़र्रे में
समाये हो जानेजाना
छुआ जो वजूद मेरा
जन्नत बना दिया....

तोहफ़ा हसीन पाकर
हूँ आसमां पर मैं
शुक्रिया मोहब्बत का
दिल से सुना दिया.....

तुम्हारे इन हाथों ने
सहेजा है इस क़दर
बिखरी हुई माटी को
मूरत बना दिया..

तेरी नज़रों के साये में
रूखसती मुझे मिले
दम आखिरी को ऐसा
मर्हला बना लिया....

जिल्द=skin, मर्हला=मंज़िल, रूखसती=छुट्टी(यहाँ मौत के सेन्स में)

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