Thursday 11 September 2014

एकतरफा एहसास.....( मेहर )

एकतरफा एहसास.....
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सुनो !
इस सुहानी सुबह में 
घर के आहाते में 
खड़ा यह पेड़ 
कितना करीब हो गया है
मुझ से, 
लिए हुये 
अपनी कोमल कोंपलों
हरी भरी नाज़ुक पत्तियों को,
देखो ना 
घोसले से झांकते नयन 
कितने स्नेहिल लग रहे हैं 
मुझ को,
मेरी नासिकाएं 
भर गयी है 
रूहानी महक से,
लगने लगा है 
सब कुछ 
अपना अपना सा
लगता है अनायास ही 
मिट गयी है दूरी, 
अरे, मेरी नज़र तो 
कहीं धुंधली ना हो गयी,
या  
आज मैं 
बैठी हूँ झरोखे में 
किसी और कोण से, 
उफ्फ !
अचानक आये अंधड ने 
हिला दी है 
पेड़ की सब टहनियाँ 
बेतरतीब सी,
और जता दिया है 
वक्त की करवट ने,
अरे ये सब तो मेरे 
महसूस किये
एकतरफा एहसास है 
पेड़ के खातिर...

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