दर्द अनोखा.....
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पाल रहे क्यों मेरे उर में, दर्द अनोखा अपना...
नयन बरसते रहते निशि दिन
अधरों उलझे गीत
साँसों में तुम आते जाते
कैसी है यह प्रीत
रातों करवट बदल बदल कर, देखूं क्यों तेरा सपना....
वान्छाओं को राख बना कर
छिड़कूँ जड़ में खाद
किन्तु सदा फिर भी पत्तों में
पलता क्यों अवसाद
कोंपल दुःख की फूट रही, क्यों लगता सब अनमना....
आहों में तू लेता रहता
मादक मधुर सुगंध
पलकों के झूले में खाता
सुखद हिंडोले मंद
मेरी बगिया में हरदम तेरा,क्यों बन सुमन पनपना...
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