Thursday 11 September 2014

उदास पतझड़ (मेहर)

उदास पतझड़
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उदास पतझड़, 
डाल सूखी 
रो रही
बुलबुल अकेली,
बस गया क्या 
दूर वन में 
मधुमास मेरा 
ऐ सहेली !

पीले पत्ते 
झड़ रहे हैं,
कलियों ने 
सौरभ गंवाई, 
रूपराशि 
मिट चुकी
निस्तेज  है 
मेरी लुनाई.

तेज पवन 
बहती अरी री,
शब्दों की सर सर  
भयंकर,
लग रहा 
सब सूना सूना 
प्यासा है 
मेरा मन मधुकर.

बंसी के 
छिद्रों में भर कर,
फूंकती हूँ 
गीत अपने, 
बिखरे हैं 
सातों सुर मेरे 
जैसे मेरे 
टूटे सपने .

आएगा 
ना आएगा 
लौट कर 
मौसम बसंती,
करते करते 
सतत प्रतीक्षा 
मिट ना जाये 
मेरी हस्ती.

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